विकास के द्वार खोलेगी ’ऑल वेदर रोड’ परियोजना 

—–देव कृष्ण थपलियाल—– 

चार धाम यात्रा को सुगम और सुविधायुक्त बनाने के लिए सडक परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय नें 12 हजार करोड की लागत से बननें वाली ’’ऑल वेदर रोड परियोजना’’ को 2017 में मंजूरी प्रदान की थीं। इसी साल 2017 में परियोजना पर काम होंना भी शुरू हुआ था, जिसे मंत्रालय नें अपनीं सुविधानुसार 53 हिस्सों बॉटा था, निर्माण मार्च 2022 में सम्पन्न हो जाना था, किन्तु पीआईएल  की वजह से कुल 13 हिस्सों में काम नहीं हो पाया, लगभग 165 किलोमीटर पर काम होंना अभी बाकी है । जिस कारण परियोजना अपनें निर्धारित अवधि से दो साल बाद यानीं मार्च 2024 में सम्पन्न हो पायेगी, परियोजना का लगभग 70 फीसदी कार्य समाप्त हो चुका है, जिस पर लगभग 8,000 करोड रूपये खर्च किए जा चुके हैं। परियोजना के तहत उत्तराखण्ड की 889 किलोमीटर लम्बी सडकों को डबल लेंन किया जा रहा है। 

ऑल वेदर रोड यानीं हर मौसम में खुली रहनें वाली सडक के लिए  बनाई चार धाम राजमार्ग विकास परियोजना का शुभारम्भ दिसम्बर 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नें किया था।  इस योजना का उद्देश्य किसी भी मौसम में पहाडी सडकों को मजबूत और टिकाऊ बनाये रखनें से है, जिससे किसी भी यात्री को सडक पर कोई परेशानीं न हो, इस योजना का लाभ उत्तराखण्ड के चार धामों को आनें वाले सैकडों-हजारों तीर्थ यात्रियों के अलावा पर्यटकों औंर स्थानीय निवासियों को मिलेगा ही, साथ ही प्रदेश के लोंगों को रोजाना  आवाजाही सें होंनें वाली तमाम दिक्कतों से भी निजात मिल सकेगी । तंग, घुमावदार सडकों और वाहनों की संख्या में लगातार हो रही वृद्वि के कारण ’’रोड एक्सीडेंट’’ जैंसी अनेक दुर्घटनाऐं सामनें आ रही थीं/हैं, जिसके पीछे का सबसे बडा कारण सडकों की खस्ताहाल हालातों से है। राज्य में अनेंकों ऐसे परिवार, गॉव और लोग हैं, जिनकी हॅसती-खेलती जींदगी इन्हीं संकरी सडकों नें लील लीं हैं।  राज्य का परिवहन विभाग के   ऑकडे इस बात की तस्दीक कर रहे हैं, रोज-रोज इन दुर्घटनाओं की खबरों से अजीज आ चुके लोंग भी दफन हो जा रहे हैं । सडक दुर्घटनाओं में मरनें वालों की संख्या में इजाफा जारी है।  किन्तु पिछले चार-पॉच सालों में ’ऑल वेदर रोड’ के आकार लेंनें से काफी कुछ परिवर्तन हुआ है । एक सकारात्मक पहल के कारण, कहा जा सकता है, कि  अब ऑल वेदर रोड’ परियोजना के तहत बनीं सडकों पर चलना ज्यादा आरामदेह, सुकून व सुरक्षित साबित हो रहा है, सिंगल लेंन की वजह से यात्राकाल में दिनभर जाम की स्थिति बनीं रहती थीं जबकि दुर्घटनाओं का भी खतरा सर  पर मंडराता रहता था ।  वहीं अब लगभग 3,000 करोड के रूके हुए कामों पर गति आनीं शुरू हो जायेगी   सडक के चौडा हो जानें के बाद बडी राहत मिल जायेगी ।  अब श्रीनगर, ऋषिकेश और अस्थाई राजधानी देहरादून, दूसरी तरफ नंदप्रयाग,  पीपलकोटी, जोशीमठ, बद्रीनाथ, वहीं चार धाम मार्गों पर पडनें वाले शहरों, नगरों, गॉव व कस्बों में  जानें के लिए लोगों को पहले से अधिक सुविधा और कम समय में पहुॅचनें का लाभ मिल रहा है।  उत्तरकाशी से गंगोत्री तक सिंगल लेंन है, इस वजह से यात्रा पर आनें वाले लोंगों के साथ ही स्थानीय लोगों को भी भारी दिक्कतों का सामना करना पडता है, दिनभर जाम की स्थिति बनीं रहती  हैं जबकि दुर्घटनाओं का भी डर बना रहता है।   परियोजना के तहत उत्तरकाशी से गंगोत्री तक 89 किमी और पालीगाड से यमुनोत्री तक 21 किमी सडक परियोजना पर काम शुरू हो जायेगा। उत्तराखण्ड के  पॉच शहरों में बाईपास निर्माण का रास्ता साफ हो  जायेगा ।  यात्रियों को भी बडी सुविधा मिलेगी। ऋषिकेश, जोशीमठ, चम्पावत पिथौरागढ लोहाघाट बाईपास , केदारनाथ मार्ग पर फाटा के पास ट्रीटमैंट कार्य, बहुप्रतीक्षित तोता घाटी के साथ अन्य स्लाइडिंग जोंन में प्रोटेक्शन वॉल आदि के कामों में तेजी आयेगी । तोता घाटी के कारण गढवाल क्षेत्र के सभी बडे जिले प्रभावित थे, पर गति से काम होंना शुरू होगी और पिछले दो-तीन सालों की दिक्कतें दूर हो जायेगीं।राजमार्गों के डबल लेंन और उचित रख-रखाव के कारण जहॉ यात्राकाल का समय घटा है, वहीं सडक दुर्घटनाओं में पहले से काफी कमी हुई है, यात्रा पहले से सूगम और सहज हो जानें से लोगों की आर्थिक गतिविधियॉ बढी हैं, सडकों की लम्बाई-चौडाई में खासी वृद्वि होंनें के कारण सडकों का शौंदर्य बढा, उठनें-बैठनें के लिए बडी जगहें, होटल-ढाबों व अन्य व्यावसायिक गतिविधियों के लिए पर्याप्त स्थान मिला है। विगत लॉकडाउन में स्थानीय युवाओं नें इसका भरपूर फायदा उठाया, हालॉकि परियोजना निर्माणाधीन  होंनें से कई बार पहाडी-चट्टानों के खिसकनें-टूटनें-दरकनें-भूस्खलन के नये-नये केंद्र विकसित होंनें से दुर्घटनाऐं भी हुईं है। इस दौरान सडकों को डाईवर्ट भी किया गया, श्रीनगर-ऋषिकेष मार्ग के ऐंन बीच तोताघाटी में स्लाइडिंग जोंन बन जानें के कारण लगभग साल भर से बंद रहा, जिस कारण वाहनों की आवाजाही श्रीनगर-चंबा-नरेंद्रनगर-ऋषिकेश से हुई जो अपेक्षाकृत अधिक समय वाली व थकाऊ सिद्व हुईं। कई स्थानों पर जाम के कारण लोगों को कई-कई घण्टों तक इंतजार करना पडा ?  स्ंाुप्रीम कोर्ट नें मंगलवार 14 दिसम्बर 2021 को उत्तराखण्ड में सामरिक रूप से अहम चारधाम राजमार्ग परियोजना के तहत बन रही सडकों को दो लेंन तक चौडी करनें की मंजूरी दे दी ।  मामले में जस्टिस चंद्रचूड जस्टिस सूर्यकांत व जस्टिस विक्रमनाथ की पीठ नें कहा-कोर्ट न्यायिक समीक्षा में सशस्त्र बलों की अवसंरचना की जरूरतों का अनुमान नहीं लगा सकती । पीठ नें कहा कि वह निगरानीं के लिए पूर्व न्यायाधीश जस्टिस एके सीकरी की अध्यक्षता में एक समिति बना रही है, जो परियोजना के संदर्भ में कोर्ट को रिर्पोट देगी।   परियोजना सबसे महत्वपूर्ण पहलू समरिक दृष्टि से देश की सुरक्षा से जुडा है, हमारा निकटतम् पडोसी व शत्रु चीन अपनें नापाक इरादों की खातिर भारतीय सीमा तक अत्याधुनिक सडकों का जाल बिछा चुका है, वहीं हमारे सीमावर्ती इलाके पलायन व मानवविहीनता के कारण देश की सुरक्षा के लिए यक्ष प्रश्न बनते जा रहे है,  ’‘ऑल वेदर रोड’ देश की सुरक्षा के लिहाज से भी रामवाण सिद्व होगी, जरूरत पडनें पर सेना अच्छी और सुविधायुक्त सडकों का इस्तेमाल कर मौके पर तुरंत पहुॅच सकेगीं ? और शत्रु राष्ट्र के नापाक इरादों कों ध्वस्त किया जा सकेगा।    , सडक परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय द्वारा संचालित ’ऑल वेदर रोड’ परियोजना को लेकर जो सबसे बडी आपत्ति, चिंता और आक्रोश पर्यावरणविदों और चिंतकों नें व्यक्त कीं है, वह भी जायज है। वैसे भी राज्य में प्राकृतिक आपदाओं की एक श्रंृखला सी बन गई जिससे राज्य को काफी नुकसान हुआ है ? एनजीटी में जनहित याचिका डालनें वाले ’’सिटीजन फॉर ग्रीन’’ दून संस्था के सचिव हिमांशु अरोडा नें इसी पर्यावरण की हानि को रोकनें के लिए ही जनहित याचिका लगाईं थीं, जानीं-मानी पर्यावरणविद् रीनू पाल का कहना है, कि इससे आपदाओं को बढावा मिलेगा, भूस्खलन सहित तमाम प्राकृतिक घटनाओं का क्रम बढेगा ? क्योंकि उत्तराखण्ड राज्य की भौगोलिक स्थिति अत्यन्त संवेदनशील है, किसी भी भारी-भरकम वस्तु से भी यहॉ कि नाजूक पारिस्थितिकी को भारी खतरा हो सकता है ? फिर इतनें बडे निर्माण से तो हिमालय और राज्य को खतरा उत्पन्न होगा ही ?   पर्यावरणविदों की चिंता उचित हैं, परन्तु उनका समाधान है,। वाडिया हिमालयन भू-विज्ञान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ0 विक्रम गुप्ता, जो सुप्रीम कोर्ट की हाई पावर कमेटी के सदस्य रहे, का मानना है, कि जहॉ कटाव किया जा रहा है, उसे तुरंत रिपेयर करनें का काम शुरू किया जाना चाहिए, सिर्फ विकास कार्यों से ही भूस्खलन जोंन विकसित नहीं हो जाते हैं ? सुप्रीम कोर्ट की हाई पावर कमेटी के दूसरे महत्वपूर्ण सदस्य केंद्रीय मृदा संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ0 धर्मवीर सिंह का कहना है कि ऑल वेदर रोड का निर्माण वैज्ञानिक तरीके से होंना चाहिए, पर्यावरण के नुकसान को न्यूनतम करते हुए, ऐसी तकनीक का प्रयोग किया जाय, जिस जगह पर काम किया जा रहा है, उसकी भरपाई दूसरी जगह पर अनिवार्य रूप से रीफारिस्टेशन वनरोपण किया जाय। प्रख्यात पर्यावरण विद् व हैस्को के निदेशक पद्मभूषण डॉ0 अनिल कुमार जोशी मानते हैं, कि ऑल वेदर रोड निर्माण होंना चाहिए, परन्तु एक रात में कई-कई किलोमीटर सडक बनानें की परम्परा अनुचित है। ध्यान रखना होगा कि सडक बहुत धीमी गति से और पूरी तसल्ली से बनें , इस पर चर्चा की जानी चाहिए कि सडकों की निर्माण की रफ्तार क्या हो ? इससे पर्यावरण के नुकसान से बचा जा सकेगा और राज्य के लोंगों सुविधा व देश की सुरक्षा को और मजबूत किया जा सकेगा । ये सार्वभौंमिक सत्य हैं, कि सडकें, किसी भी क्षेत्र के लिए ’लाइफ लाइन’ साबित होंती हैं, फिर पहाड की दूरूह भौगोलिक परिस्थितियों के चलते यहॉ का सफर वैसे थकाऊ और उबाऊ साबित होता है, बाहर से आनें वाले किसी कर्मचारी को छोडिये, खुद यहॉ का स्थानीय निवासी भी निकलनें को आतूर रहता है। काफी लोगों का पहाड छोडनें का सच भी यही है ? स्पष्ट कारण सडकों की बनावटें ही है। पलायन के पीछे का बडा सच भी यही है। चार धाम रोड परियोजना के लिए 70 फीसदी  बन चुकीं ’ऑल वेदर रोड’ इस बात के पुख्ता प्रमाण है, कि सफर पहले की अपेक्षा आरामदेह, और समय की बचत करनें वाला सिद्व हुआ है। इससे रोजगार और व्यावसायिक गतिविधियों को भी गति मिली है।      
  
      

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