देहरादून। जनरल बिपिन रावत को श्रद्धांजलि देते हुए पूर्व सांसद एवं युद्ध स्मारक के अध्यक्ष तरुण विजय ने कहा कि यह युद्ध स्मारक अनेक षड्यंत्रों और क्षुद्र राजनीतिक बाधाओं को पार कर तैयार हुआ तो उसका बड़ा कारण जनरल बिपिन रावत द्वारा इसे सम्पूर्ण समर्थन देना था. वे इस युद्ध स्मारक के पिता कहे जा सकते हैं। उन्होंने इस स्मारक हेतु जमीन दिलवाई जो सैनिक सम्पदा इतिहास मेंअनूठा उदाहरण? है. उन्होंने मिग २१ तथा नौ सेना का युद्धक पोत मॉडल दिलवाया और सेना से कारगिल विजय के ताम्र चित्र और गन्स दीं। उन्होंने १६ दिसम्बर को युद्ध स्मारक निरीक्षण का वायदा किया था जिसके लिए हम तैयारी कर रहे थे. लेकिन अब १६ दिसम्बर उनके बिना सूनी रह जाएगी. उन को यहाँ चन्दन का पौधा लगाना था जो हम अब उनकी याद में लगाएंगे।
उनका उत्तराखंड से विशेष स्नेश था, हम सदैव उनके ऋणी रहेंगे. युद्ध स्मारक सञ्चालन मंडल की ओर से उनको हार्दिक श्रद्धांजलि। जनरल साहेब हमेशा हमें मुस्कुराते और बहुधा मजेदार कहानियां सुनते थे. हम हर साल सेना के लिए एक लाख राखियां देश भर के स्कूलों से बनवा कर उनको सीमा वर्ती क्षेत्रों मं तैनात जवानों के लिए देते थे। इस साल मैं और मेरी बेटी शाम्भवी राखियां लेकर साउथ ब्लॉक स्थित उनके शानदार कार्यालय पहुंचे , ब्रिगेडियर लिद्दर , उनके मिलिट्री सहायक ने चाय के साथ स्वागत किया. वे इतने मिलनसार और मजाकिया थे , विश्वास नहीं होता था कि वे उच्च सैन्य अधिकारी हैं. कितना दुःख कि वे आज नहीं रहे। कुछ देर बाद हमें जनरल बिपिन रावत जे के भव्य कक्ष में आमंत्रित किया गया. जन. रावत स्वयं उठकर हमारी राखियां स्वीकार करने आये. मेरी बेटी शाम्भवी से राखी बंधवाई , फिर मेरी पत्नी से बोले श्भुली श्, चाय पिए बिना जाओगी ? भुली पहाड़ी में बहन को कहते हैं. फिर काफी देर वे मेरी बेटी से पढाई और देश विदेश की बातें करते रहे. लगा ही नहीं कि राष्ट्र के इतने महत्वपूर्ण सेनाधिपति से हम रूबरू हो रहे हैं. एक बार तमिलनाडु से प्रधानाचार्य राम सुब्रमण्यम और बच्चों के साथ देहरादून, आर्यन स्कूल और सेवा भारती व् शिशु मंदिर से छात्राएं राखियां लेकर गयीं तो हरेक ने उनके साथ फोटो करवाई, उन्होंने सबको मौका दिया – यह नहीं कहा कि ग्रुप हो गया अब जाओ. सब उनको देव तुल्य राष्ट्र रक्षक मानते थे।
उनको चीन के षड्यंत्रों और विश्वासघाती चालों की गहरी पहचान थी. गलवान का जो बदला उन्होंने लिया ( काफी कुछ जानकाफ़री बाहर कभी नहीं आयी ) उसके कारण चीन दहल गया। चीन कैसे भविष्य में दबा कर रखा जाये इसकी उनकी जानकारी असीम थी और इसके लिए वे सेना की तीनों अंगों को तैयार कर रहे थे. पाकिस्तान को वे चिंता का कारण नहीं मानते थे. श् जब तय कर लेंगे निबटा देंगे ष् ऐसा वे हंस कर कहते थे.
उत्तराखंड में बाड़ा होती सीमा तक सड़क नहीं थी, जन रावत ने स्वयं पहल कर तमाम बाबूशाही और पर्यावरण के शूल झेल कर सीमा तक बढ़िया सड़क बनवाई यह उन्होंने मुझे स्वयं बताया था. मुंशियारी से मिलम ग्लेशियर तक की पक्की मजबूत सड़क समय पर नहीं बनाने से वे बहुत नाराज थे। देहरादून में पैंतीस वर्षों से युद्ध स्मारक की मांग हो रही थी. लेकिन एक भी मुख्यमंत्री ने एक इंच जमीन नहीं दी, बस हवाई बातें करते रहे. मनोहर पर्रिकर जी के समय मैंने अपनी सांसद निधि से ढाई करोड़ रुपये युद्ध स्मारक हेतु दिए तो जनरल बिपिन रावत जी ने थल सेनाध्यक्ष के नाते उसस्के लिए राजभवन के सामने चीड़ बाग़ में जमीन दी , पर्रिकर जी ने भूमि पूजन किया आज वो तैयार है। . लेकिन वे इसे नहीं देख पाएंगे इसका दुःख है. इस युद्ध स्मारक निर्माण में हर बाधा को जनरल बिपिन रावत ने दूर किया, मिग २१ का फ्रेम दिलवाया, स्वयं कारगिल विजय के ताम्र चित्र दिलवाये, नौसेना का मॉडल दिया और कहा तरुण जी मैं १६ दिसम्बर को देहरादून आ रहा हूँ, शौर्य स्थल देखने जरूर आऊंगा। हम सब इनके आगमन की तैयारियों में थे. लेकिन विधि का विधान कुछ और ही था. युद्ध स्मारक का एक जीवंत टेल चित्र देहरादून के चित्रकार मनु दत्ता ने बनाया तहत उसके साथ बहुत प्रसन्न होकर उन्होंने फोटो खिंचवाई हुए उसे अपने कार्यालय में लगाया।
इजराइल, अमरीका और रूस के साथ उच्च सैन्य सम्बन्ध बनाने , उनसे अत्याधुनिक हथियार लेने तथा उस तकनीक के भारत की आयुध निर्माणियों को स्थानांतरित कर वाने में जनरल बिपिन रावत का बहुत बड़ा योगदान था। अवकाश ग्रहण करने के बाद वे उत्तराखंड के विकास हेतु अपना समय देबे का म,ान बना रहे थे. उनका असमय जान देश के लिए तो अपूरणीय क्षति है ही लेकिन उत्तराखंड के लिए तो अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण पूर्ण है।
उन्होंने कभी किसी के आगे झुकना नहीं सीखा. अपनी गोरखा पल्टन के वे देवता थे. उनके सभी सहायक और सहयोगी गोरखा पल्टन से थे और वे सदा उनके साथ गोर्खाली में बात करते थे। इसी पल्टन को उनके पिता लेफ्टिनेंट जनरल लक्ष्मण सिंह रावत ने कमांड किया था. अपनी खानदानी विजयी परंपरा को उनहोने बखूबी निभाया. उनकी धर्मपत्नी श्रीमती मधुलिका रावत मृदुभाषी और सैनिक परिवारों के साथ सुख दुःख का सम्बन्ध रखती थी. दोनों मानों एक दूसरे के लिए बने थे. एक साथ जिए एक साथ विदा हो गए. गगन में अमर नक्षत्र की भांति जनरल बिपिन रावत सदैव भारतीय युवाओं को सैन्य धर्म पालन की प्रेरणा देते रहेंगे।
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