-देव कृष्ण थपलियाल-
विधान सभा चुनाव 2022 की आहट पहाडों में सुनाई देंनें लगी है। नेता, मंत्रीगण, कार्यकर्ताओं नें गॉव-गॉव, देहरी-देहरी जाना शुरू कर दिया हैं, इस दौरान राज्य के परम्परागत तीज-त्योहारों की चमक भी कुछ विशेष दिखी, आमतौर पर जाडों में होंनें वाली रामलीलाओं मंे ’राम’ के अलावा राजनीति के नुमाइंदे की उपस्थिति नें भीड और आमदनी में खासा इजाफा किया । सुनसान पडे पहाडी गॉव-कस्बों के रास्ते-पगडंडियॉ, आजकल सरकारी नारांे और वायदों के साथ, आला अधिकारियों और मंत्रिगणों की अवाजाही शुरू हो गईं है । मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी उनकी टीम के मंत्री-विधायक तथा उम्मीदवार इन दिनों राजधानी या शहरों की जगह गॉव-देहातों में धूल फॉकते दिख रहे हैं। प्रमुख विपक्षी दल कॉग्रेस के सर्वमान्य नेता हरीश रावत भी अपनीं ठेठ पहाडी अंदाज में महीनों से पहाड-मैंदान कर रहे हैं, पार्टी के नये खेवनहार श्री गणेश गोदियाल, पार्टी के राज्य प्रभारी श्री देवेन्द्र यादव, नेता प्रतिपक्ष श्री प्रीतम सिंह तथा वरिष्ठ कॉग्रेसी नेता भाजपा सरकार की नीतियों के खिलाफ जमकर मोर्चा लिए हुए हैं ?
परन्तु इस बार राज्य के विकास और प्रमुख मुद्दों के अलावा नेताओं में राज्य की संस्कृति, परम्परा, रस्म-ओं-रिवाज के प्रति अद्भूत प्रेम छलकता दिख रहा है । ऐन चुनावों के वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बद्रीनाथ-केदारनाथ के दर्शनों को आना हैं, 5 नवंबर को प्रधानमंत्री जी नें केदारनाथ में करोडों के कामों का लोकार्पण, शिलान्यास किया, जो आम लोंगों के लिए ’लाइव प्रसारण’ उपलब्ध था, यहॉ तक कि इस ’दर्शन’ पर प्रमुख विपक्षी दल कॉग्रेस को एतराज भी हुआ, कारण गर्भगृह में तस्वीरें लेंनें की पाबंदी थीं, खुद सरकार का बनाया ’देवस्थानम बोर्ड एक्ट’ गर्भगृह की किसी भी प्रकार की तस्वीर लेंनें की पाबंदी लगाता है, के बावजूद प्रधानमंत्री की लाइव तस्वीरें दिखीं, बल्कि मंदिर परिसर में एक आम सभा का आयोजन भी सम्पन्न हुआ ? जिसे आमतौर पर नहीं होंना चाहिए था, निकट भविष्य में उत्तराखण्ड/उत्तर प्रदेश सहित देश पॉच राज्यों में चुनाव सम्पन्न होंनें हैं ? वहीं कॉग्रेस के अनेक नेताओं नें भी बडी भक्ति के साथ बाबा का आर्शीवाद लिया। श्री हरीश रावत के साथ पार्टी अध्यक्ष गणेश गोदियाल, नेता प्रतिपक्ष श्री प्रीतम सिंह, जैसे शीर्ष नेतृत्व नें अपनें-अपनें ढंग से श्री बदरीनाथ व बाबा केदार से वरदान मांगा ? पार्टी नें ’गणेश आपके द्वार’ स्लोगन से चुनाव कैंम्पेन की शुरूवात की है, भले कहा जा रहा है, कि पार्टी अध्यक्ष के नाम से इसका ताप्पर्य है, परन्तु ’गणेश’ हिन्दुओं के प्रथम पूजनीय देवता भी हैं, और कहीं न कहीं इस बात को पार्टी भूनाना भी चाहेगी ? सुबे की राजनीति ताजातरीन प्रवेश कर रही आम आदमी पार्टी नें अपनें पहले विजन में तय कर दिया है, कि इस राज्य को हिन्दुओं की राजधानी बनायेगी ?
सवाल उठता है, कि सभी नेतागण इतनें धार्मिक-आध्यात्मिक भावना से ओत-प्रोत हैं, तो राज्य में गॉधीं जी की ’रामराज्य’ की अवधारणा को साकार होंनी चाहिए था ? दूसरा महत्वपूर्ण पक्ष नेताओं के उत्तराखण्ड प्रेम से सम्वंधित है । राज्य के लगभग सभी बडे नेता, कार्यकर्ता और उम्मीदवारी की आस में बाट जोह रहे नेताओं में गढवाली-कुमाऊनीं भाषा में भाषण-बातचीत करनें ललक दिख रही है, राज्य के मुखिया श्री पुष्कर सिंह धामी जी का कुमॉऊनी भाषण के अलावा, आपसी संवाद भी अचानक इसी भाषा में हो रहा है । ’अपणि सरकार पोर्टल’ जैसी बहुत सारी राज्य सरकार की योजनाओं-परियोजनाओं के नाम, प्रक्रियायें और स्लोगन भी गढवाली-कुमाऊनीं में संपादित किया जाना सस्ते में राज्य के लोंगों को प्रभावित करना है ।
’ईगास’ ’बुढ बग्वाल’ अथवा कान्सी बग्बाल के नाम से जानें जानीं वाली ’देव प्रबोधनीं एकादशी पर्व को पहाड में इसी नाम से संबोधित किया जाता है, मुख्य दीपावली से ग्यारह दिन बाद आयोजित होंने वाले लोक पर्व को उत्तराखण्ड के जनमानस में बडे हर्षोल्लास के साथ मनाये जानें की परम्परा सदियों से रही है, यह ठीक मुख्य दीपावली की तरह मनाये जानें वाला पर्व है, इसमें भी वही उमंग और उल्लास देखनें को मिलता है, जो आम दीपावली में होता है, आजकल दीपकों की जगह इलैक्ट्रानिक लडियों नें ले लिया है, इसीलिए आम दीपावली से इस ईगास तक लोग घरों को उसी तरह सजाए हुए रखते हैं। लेकिन पिछले सालों से इस ’लोकपर्व’ पर राजनीतिको की नजर हैं। सालों से भारतीय जनता पार्टी के नेता तथा राज्य सभा सांसद अनिल बलूनी प्रवासियों से इस लोकपर्व को पहाड यानीं अपनें घर-गॉव में आकर मनानें की अपील की जा रही थीं, उनका आशय इससे ’पलायन’ से खण्डर हो रहे पहाड को नई पीढी की ऑख खोलनें जैसा है, जिससे नई पीढी को अपनीं जडों से रूबरू हो सके !
पिछले साल अपनी अस्वस्थता के कारण वे स्वयं नहीं आ पाये परन्तु उनकी पार्टी के श्री संबित पात्रा नें उनके गॉव में आकर इस रस्म को पूरा किया था । परन्तु इस समय स्वयं बलूनी अपनें गॉव थे, और पूरे उत्साह के साथ ईगास में शामिल हुए थे। लेकिन ’ईगास’ पर सभी नेताओं की जुगलबंदी देखनें लायक थीं, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी सुदूर पिथौरागढ के अपनें गॉव में पारम्परिक ’झौडा’ नृत्य में शामिल भी हुऐ और पूरे रंगत में दिखे, अच्छा होता मुख्यमंत्री जी इस दौरान महत्वपूर्ण फाइलों, परियोजनाओं व शासन-प्रशासन सम्बन्धी आवश्यक कामों का निपटारा करते ? यही नहीं विगत कई दिनों से उनके भाषण और संवाद अपनी मातृभाषा में ही दिखे, उधर उन्हीं की सरकार नें इस पर्व पर सार्वजनिक अवकाश की घोषणा कर दी । कॉग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत भी पूरे रंग में दिखे, कॉग्रेस के कप्तान भी सुदूर अपनें इलाके के गॉव शुक्र जिला पौडी गढवाल में ढोल-दमाऊ की थाप पर नृत्य करते दिखे, भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता, मंत्री डॉ0 हरक सिंह रावत सब पर भारी पडते दिखे, प्रसिद्व जागर सम्राट पद्म श्री प्रीतम भरतवाण के एक कार्यक्रम में ’ईगास’ पर्व पर उन पर भगवान नर्सिंग ही अवतरित हो गये, जो सोशल मीडिया पर उनका यह नृत्य देखनें लायक था, आम लोंगों नें इसे पसंद व साझा भी किया ? खैर ये माननीय मंत्री जी की अपनी कार्यशैली है, आम लोग इस तरह के कार्यों उनसे जुडते भी होंगें ओर उन्हें ’वोट’ भी देते होंगें ?
राज्य की संस्कृति, परम्परा से प्रेम होंना कोई अनुचित विचार नहीं है, और नही हमारा उद्देश्य किसी की आस्था, विश्वास और मान्यता को ठेस पहॅुचाना है, निश्चित रूप से यह स्वागत योग्य कदम है। किन्तु सवाल उठता है, जनता के रहनुमा जब अपनीं संस्कृति-परम्परा से इतना प्रेम करते हैं, तो फिर राज्य में इतना बडा ’पलायन’ क्यों हैं ? राज्य की राजधानी ’गैरसैंण’ क्यों नहीं, जिसे राज्य के निवासियों नें निर्विवाद स्वीकार किया है ? राज्य बननें से पहले जो रौनक गॉव-कस्बों में हुआ करती वो गायब क्यों हैं ? क्यों नहीं राज्य के अनेकों मंदिरों, तीर्थ स्थलों, धर्मिक-सॉस्कृतिक महत्व की अनेक परम्पराओं, जगहों, नदियॉ, वनों, गॉव और कोथिग-मेलों, घटनाओं तथा प्राचीन धार्मिक ग्रन्थों में उल्लिखित प्रसंगों, कथा-कथानको, को उकेरा गया, उन्हें जीवन्त और प्रकाशित करनें की कोशिश की गईं होती ? पर्यटन और तीर्थाटन उत्तराखण्ड की रीढ हैं। जिन्हें सजा-संवार उसे तीर्थाटन-पर्यटन के लिए उपयोगी तथा सुगम बनाया जा सके, इससे राज्य का विकास होगा, उसके साथ-साथ अनेक नौजवानों को रोजगार और आर्थिक समृद्वि भी प्राप्त होगीं, आमतौर से उत्तराखण्ड की सडकें खराब स्थिति में होतीं हैं, यह स्वाभाविक भी पहाडी मार्ग हैं, कई बार बरसात तो कई उचित रख-रखाव के अभाव में सडको का उबड-खाबड, गढ्ढे व क्षतिग्रस्त होंना स्वाभाविक है। स्टे होंम, वीर चंद्र सिंह गढवाली योजना किसी भी तरह पर्यटन और तीर्थाटन को बढावा नहीं दे सकते है, केवल योजना बना लेंनें से लक्ष्य प्राप्ति नहीं हो सकेगी, इसके लिए जमीनी प्रयास जरूरी हैं । महज प्रतिकात्मकता से काम नहीं चलेगा ?
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