बालगंगा महाविद्यालय सेंदुल का राजकीयकरण अधर में लटका

टिहरी। बालगंगा महाविद्यालय का राजकीयकरण अधर में लटक गया है। कॉलेज में कक्ष-कक्षों, प्रयोगशाला और शौचालय का अभाव बना हुआ है, जबकि महाविद्यालय में हर साल छात्र संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। जिसमें छात्राओं की संख्या सर्वाधिक है। बालगंगा महाविद्यालय के राजकीयकरण करने की मुख्यमंत्री की घोषणा हवा-हवाई साबित हुई। सीएम की घोषणा पर स्थानीय जन प्रतिनिधियों ने सवाल उठाते हुए सरकार पर युवाओं के भविष्य से विश्वासघात करने का आरोप लगाया।
भिलंगना टिहरी जिले का सबसे बड़ा विकासखंड है। 180 ग्राम पंचायत वाले विकास खंड में उच्च शिक्षा के लिए बालगंगा महाविद्यालय एक मात्र संस्थान है। 1991 में क्षेत्र के लोगों ने स्वयं के संसाधनों से सेंदुल में एक निजी भवन पर बालगंगा महाविद्यालय की स्थापना की थी। छात्र संख्या बढ़ने पर ग्रामीणों ने महाविद्यालय निर्माण के लिए बालगंगा शिक्षा प्रसार समिति को 50 नाली भूमि दान दी। समिति ने 2001 में सेंदुल महाविद्यालय का भवन निर्माण कराया। 2 फरवरी 2009 में तत्कालीन सीएम भुवन चंद्र खंडूरी ने बालगंगा महाविद्यालय को अनुदान देने की घोषणा की थी। 2015-16 में स्नातक स्तर पर विज्ञान संकाय भी शुरू हो गया। वर्तमान में महाविद्यालय में 15 विषय चल रहे है। 10 विषय अनुदान सूचि में शामिल है। पांच विषय श्रीदेव सुमन विवि से स्ववित्त योजना के अंतर्गत चल रहे है। जिसके लिए छात्र-छात्राओं को अधिक शुल्क अदा करना पड़ता है।
9 दिसंबर 2018 को तत्कालीन सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने श्री गुरु कैलापीर मेले में बालगंगा महाविद्यालय को राजकीय महाविद्यालय का दर्जा देने की घोषणा की थी। तब से तीन साल का वक्त गुजर गया, लेकिन महाविद्यालय का राजकीयकरण नहीं हो पाया। महाविद्यालय में छात्र संख्या बढ़कर 877 तक पहुंच चुकी है। प्रयोगशाला और शौचालय की भी महाविद्यालय में पर्याप्त सुविधा उपलब्ध है। पूर्व विधायक भीमलाल आर्य का कहना है कि राजकीयकरण की घोषणा कर सीएम ने सिर्फ वाहवाही लूटी। धरातल पर कोई भी कार्य नहीं हुआ। बालगंगा शिक्षा प्रसार समिति के मंत्री चंद्र किशोर मैठाणी का कहना है कि शासन स्तर पर राजकीयकरण की कार्रवाई गतिमान है।