देहरादून। भारत में असम, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, और बिहार बाढ़, सूखा और चक्रवात जैसी जलवायु संबंधी चरम घटनाओं के लिए सबसे ज्यादा जोखिम वाले राज्य हैं। यह जानकारी अपनी तरह के पहले क्लाइमेट वल्नेरेबिलिटी इंडेक्स (जलवायु सुभेद्यता सूचकांक) से सामने आई है, जिसे आज काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) ने जारी किया है। कुल मिलाकर, भारत के 27 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश जलवायु संबंधी चरम घटनाओं के जोखिम की चपेट में हैं, जो अक्सर स्थानीय अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाते हैं और कमजोर समुदायों को विस्थापित करते हैं। इतना ही नहीं, 80 प्रतिशत से अधिक भारतीय जलवायु संबंधी चरम घटनाओं के जोखिम वाले जिलों में रहते हैं।
जलवायु परिवर्तन पर आगामी चर्चा ग्लासगो, ब्रिटेन में होने जा रही है। इसे कॉप-26 कहा जा रहा है। इसमें भारत जैसे विकासशील देशों की ओर से विकसित देशों से समय पर क्लाइमेट फाइनांस (जलवायु वित्त) जुटाने और वितरित करने की मांग रखे जाने की उम्मीद है। इससे विकासशील देशों को जलवायु संबंधी घटनाओं से निपटने के लिए अपनी अनुकूलन प्रणाली को मजबूत बनाने और कार्बन का कम उत्सर्जन करने वाले उपायों को अपनाने की गति बढ़ाने में मदद मिलेगी। विकसित देशों ने अभी तक जो वादे किए हैं, वे अपर्याप्त हैं और पूरे किए जाने बाकी हैं। इंडिया क्लाइमेट कोलेबोरेटिव एंड एडलगिव फाउंडेशन की ओर से समर्थित इस अध्ययन में आगे कहा गया है कि भारत के 640 जिलों में से 463 जिले अत्यधिक बाढ़, सूखे और चक्रवात के जोखिम के दायरे में हैं। इनमें से 45 प्रतिशत से अधिक जिले अस्थिर परिदृश्य और बुनियादी ढांचे में बदलावों का सामना कर चुके हैं। इसके अलावा, 183 हॉटस्पॉट (सबसे ज्यादा घटनाओं वाले) जिले जलवायु संबंधी एक से अधिक चरम घटनाओं के लिए अत्यधिक जोखिम की चपेट में हैं। सीईईडब्ल्यू के अध्ययन में यह भी पाया गया है कि 60 प्रतिशत से अधिक भारतीय जिलों में मध्यम से निम्न स्तर तक की अनुकूलन क्षमता मौजूद है।