हिन्दी विश्व में प्रथम-एक प्रामाणिक शोध-भाषा मनीषियों का निष्कर्ष

हिन्दी दिवस पर विशेष
-डॉ जयंती प्रसाद नौटियाल- अब तक सभी यह मानते आए हैं कि चीन की भाषा मंदारिन को जानने वाले विश्व में सबसे अधिक हैं। परंतु यह सत्य नहीं है, विश्व मे भाषा संबंधी आंकड़े परिचालित करने वाली संस्था एथनोलोग ने अपनी 2021 की रिपोर्ट मे अंग्रेज़ी को प्रथम माना है, तथा इनके बोलने वालों की संख्या 1348 मिलियन अर्थात 1 अरब चौंतीस करोड़ 8 लाख दर्शाई है तथा मंदारिन को दूसरे स्थान पर रखा है। इसके बोलने वालों की संख्या 1 अर्ब 12 करोड़ बताई है तथा हिन्दी को तीसरे स्थान पर रखा है और इसके बोलनेवालों की संख्या सिर्फ 60 करोड़ दर्शाई है, यह सिलसिला काफी लंबे समय से चल रहा है। सबसे पहले मैंने सन 1981 मे इन आंकड़ों की विसंगति पर ध्यान दिया व मोटे मोटे तौर पर जब अनुमान लगाया तो उस वक्त मुझे पता लगा की भारत के साथ हमेश से विश्व स्टार पर भेद भाव हो रहा है । मैंने इस विषय पर गहन अध्ययन करना शुरू कर दिया पूरे विश्व के भाषा भाषियों के आंकड़े जुटाये, यह संख्या दूतावासों से एवं अन्य प्रकाशित दस्तावेजों से एकत्र किए तथा 1987 मे जब मुझे पूरा भरोसा हो गया की हिन्दी बोलने वाले या जानने वाले विश्व मे सबसे अधिक हैं और हिन्दी विश्व मे पहले स्थान पर है , तब मैंने इसका प्रचार करना शुरू कर दिया तथा 1997 में इसे भारत सरकार के गृह मंत्रालय, राजभाषा विभाग की पत्रिका राजभाषा भारती मे प्रकाशन हेतु भेजा ।

राजभाषा विभाग के संपादकीय विभाग ने मुझसे स्पष्टीकरण पूछे तथा शंकाओं का निराकरण हो जाने के बाद इसे अक्तूबर दृदिसंबर 1997 के अंक मे प्रकाशित किया,। इस पर मुझे पूरे भारत से अनेक प्राशन पूछे गए और यह भी पूछा गया की इस शोध का आधार क्या है ? अतः मैंने इन सभी शंकाओं के निवारण के लिए जो आधार अपनाए थे वे सार्वजनिक किए, आज पाठकों की जानकारी के लिए उन्हें यहाँ दे रहा हूँ।
मंदारिन का असली सचः
चीन भी हमारी तरह बहुभाषी देश है। चीन में 70 अन्य उप भाषाएँ व बोलियाँ हैं जिनमें 10-15 तो बड़ी संख्या में चीन में व विश्व के अनेक भागों में बोली जाती हैं। यहाँ तक कि मंदारिन के नाम पर तो उत्तरी चीन एवं दक्षिणी चीन के मतभेद साफ़ नज़र आते हैं। तिब्बती, कैंटोनीज, फुकीन, हक्का जैसी भाषाओं का वर्चस्व चीन में व इस के बाहर देखा जा सकता है। चीनी भाषा की लिपि होने पर विश्व के भाषाविदों ने समस्त चीनी बोलियों, उपबोलियों व चीनी भाषा परिवार को जोड़ कर इसकी संख्या 1990 में लगभग 730 मिलियन ( 73 करोड़ ) आँकी जो 2005 में बढ़कर लगभग 900 मिलियन( 90 करोड़ ) हुई और आज 2021 मे कुल 1120 मिलियन ( 1 अरब 20 करोड़ ) है , जबकि हिन्दी जानने वाले आज 1450 मिलियन अर्थात 1 अरब 45 करोड़ हैं, लेकिन इसका आकलन तो मेरे पास है लेकिन प्रमाण मेरे पास नहीं है , इसलिए जो प्रमाण मेरे पास हैं उनके अनुसार विश्व मे हिन्दी के जानकारों की संख्या 1 अर्ब 35 करोड़ 60 लाख है , उस स्थिति मे भी हिन्दी पहले स्थान पर ही स्थापित होती है।

अँग्रेजी भाषा का असली सचः
अग्रेजी को ही लें, इसमे भी कई तरह की अँग्रेजी भाषा होती हैं, ब्रिटिश इंग्लिश , अमेरिकन इंग्लिश, और विश्व मे आँय जगह जहां भी यह बोली जाती है उसमे बहुत अंतर है फिर भी इन सभी को मिला कर और कई गुना बढ़ा कर दिखाया जाता है, यह मुद्दा मैं उदाहरण देकर समझाना चाहता हूँ, भारत मे अँग्रेजी जानने वाले 5 प्रतिशत से भी कम हैं लेकिन अलग अलग सर्वे मे 10 से 15 प्रतिशत संख्या दिखाई जाती है जो वास्तविकता से दोगुने और तीन गुने तक बढ़ी हुई है । इसी प्रकार आँय देशों के आंकड़ों को भी बढ़ा चढ़ा कर गणना की जाती है । विदेशी जनता और उनके संगठन कुछ भी करें वह ठीक है लेकिन हम हिन्दी की वास्तविक संख्या भी दें तो स्वीकार्य नहीं, …!!! यह है हमारी राष्ट्रीय भावना…….!!!!!!!

हिन्दी तीसरे नंबर पर क्यों ?
हिंदी के विषय में आरंभ से ही विदेशियों की धारणा गलत रही है। संसार भर के भाषाविद् हिंदी के नाम पर सिर्फ़ श्खड़ी बोलीश् को ही हिंदी मानते आए हैं जबकि यह सच नहीं है। हिंदी की बोलियाँ भी इसमें शामिल की जानी चाहिए थी, जिस प्रकार चीनी भाषा और अङ्ग्रेज़ी भाषा के लिए किया गया । साथ ही विदेशियों ने उर्दू को अलग भाषा के रूप में गिना है. यह भी बिल्कुल गलत है। संसार का कोई भी भाषा विज्ञानी उर्दू को अलग कैसे मान सकता है? क्योंकि भाषा तो भाषिक संरचना से वर्गीकृत होती है, केवल लिपि से नहीं. इसमें अधिकांश शब्द व व्याकरण व्यवस्था हिंदी की ही है। अतः हिंदी से इसे अलग भाषा मानना कतई युक्तिसंगत नहीं हैं। हिंदी की बोलियाँ और उर्दू बोलने वालों की संख्या मिला देने से विश्व में हिंदी जानने वाले 1450 मिलियन ( एक अरब 45 करोड़) से अधिक हैं जबकि मंदारिन जानने वाले केवल 1120 मिलियन के लगभग हैं । अर्थात मंदारिन जानने वालों से हिंदी जानने वाले 330 मिलियन ( तैंतीस करोड़ अधिक हैं। परंतु मेरे पास इसके प्रमाण नहीं हैं यह मेरा शोध है लेकिन मैंने जो प्रमाण सहित जो आंकड़े जुटाये हैं उनके अनुसार हिन्दी के जानकार 1 अरब 35 करोड़ 60 लाख हैं । ये विधिवत प्रमाणित आंकड़े हैं । अतः; यहाँ संदेह का कोई स्थान नहीं ।
कुछ अरसा पहले एक रिपोर्ट में यह दर्शाया गया था कि विश्व में चीनी भाषी एक अरब हैं। अर्थात 1000 मिलियन हैं। यह संख्या सभी प्रकार की चीनी भाषा परिवार की भाषाओं को जोड़ कर निकाली गई हैं। यदि हिंदी में आर्य भाषा परिवार की भाषाओं को मिला दें तथा अन्य भाषाओं में प्रयुक्त हिंदी शब्दों की समानता को देखकर संख्या निकालें तो भी यह संख्या 1800 अधिक होगी अर्थात 1 अरब 80 करोड़ होगी ।
मेरे इस शोध का सारांश सन 2005 में जब भारतीय व विदेशी समाचार पत्रों के इंटरनेट संस्करणों के माध्यम से विश्व के 185 देशों में प्रकाशित हुआ तो कई पोर्टलों ने इस पर इंटरनेट चौट कराया व पाठकों के विचार आमंत्रित किए। संसार में किसी भी विद्वान ने इसका खंडन नहीं किया। इस शोध रिपोर्ट के छपने के बाद कुछ विद्वानों ने कुछ देशों के अद्यतन आँकड़े उपलब्ध कराए जिनकी जांच के उपरांत मैंने उन्हें अपनी शोध रिपोर्ट मे शामिल कर दिया था, मैं उनका आभारी हूँ।
हिन्दी हर दृष्टि से पहले स्थान पर ही आती है । अङ्ग्रेज़ी दूसरे स्थान पर और मंदारिन तीसरे स्थान पर आती है । अतः हमारा यह दायित्व है कि हम हिन्दी को सदैव पहले स्थान पर ही दिखाएँ ।

विद्वानों/भाषाविदों का अभिमतः
सम्पूर्ण विश्व से मुझे विद्वानों, भाषाविदों, तथा शिक्षाविदों ने सराहना संदेश भेजे कुछ ने फोन पर कुछ ने ई मेल से कुछ ने विधिवत हस्ताक्षरित पत्र भेज कर इस शोध का समर्थन किया। मुझे केवल एक ही अभिमत इसके विरोध मे मिला जिसका की मैंने समुचित उत्तर दे दिया था लेकिन मुझे बाद मे पता चला की वह निहित स्वार्थ के कारण विरोध मे लिखा गया था।

मान्यता संबंधी प्रश्नः
इस शोध को भारत मे मान्यता दिलाने के लिए मैंने भारत के माननीय गृह मंत्री आदरणीय अमित शाह जी को यह इस आग्रह से भेजी गए थी की राजभाषा विभाग गृह मंत्रालय के सभी प्रकाशनों मे हिन्दी को विश्व की सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा के रूप मे प्रचारित और प्रसारित किया जाय क्योंकि गत 40 वर्ष से निरंतर शोध से यह निर्विवाद रूप से सिद्ध हो चुका है की हिन्दी ही विश्व की नंबर 1 भाषा है । माननीय गृह मंत्री जी ने यह रिपोर्ट उचित कार्रर्वाई हेतु राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय को भेजी , राजभाषा विभाग ने यह रिपोर्ट तथ्यों की जांच हेतु अर्थात “फ़ैक्ट चेक” हेतु केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा को भेजी । केन्द्रीय हिन्दी संस्थान ने इस रिपोर्ट को विश्व मे हिन्दी भाषा के आधिकारिक विशेषज्ञ के पास शोध की सत्यता और उसमे वर्णित तथ्यों की जांच के लिए भेजा । यह मेरी सन 2021 की अद्यतन रिपोर्ट है, जिसमें प्रामाणिक तथ्य व नवीनतम आंकड़े दिए गये हैं। विशेषज्ञ ने गंभीर जांच और विश्लेषण इस रिपोर्ट के तथ्य और कथ्य को सही पाया तथा सशक्त शब्दों मे इसकी पुष्टि की, विशेषज्ञ कि रिपोर्ट के आधार पर और संस्थान के विद्वान और अनुभवी प्रोफेसरों तथा विदुषी निदेशक ने अपने सम्यक विवेक से संस्थान कि ओर से भी इस शोध रिपोर्ट को सशक्त शब्दों मे संस्तुत करते हुए राजभाषा विभाग को भेज दिया । विश्व स्टार पर मान्यता के लिए मैंने एथ्नोलोग , लाइब्रेरी ऑफ काँग्रेस जैसी संस्थाओं से संपर्क किया है जिसके सकारात्मक परिणाम शीघ्र ही मिल जाएंगे।

निष्कर्षः
इससे यह सिद्ध होता है कि यह रिपोर्ट एक सही, प्रामाणिक और शिक्षा मंत्रालय , भारत सरकार की हिन्दी के विकास के लिए बनी शीर्ष संस्था , अर्थात केन्द्रीय हिन्दी संस्थान द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ द्वारा प्रमाणित शोध है।मेरी शोध के आंकड़े बिलकुल सही हैं, गणना पद्धति के लिए मेरी शोध 2021 देखें। यह शोध मेरी वैबसाइट मे ww.drjpnautiyal.com पर लिंगुइस्टिक रिसर्च पेपर पर देखी जा सकती है । यदि किसी को भी कोई शंका हो तो मुझसे स्पष्टीकरण लिया जा सकता है, समाचार पत्रों में आधे अधूरे ज्ञान से भ्रम फैलाना उचित नहीं। मुझसे ई मेल  dr.nautiyaljp@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है ।