देहरादून। कल्याणकारी योजनाओं के नाम पर धन की बर्बादी करना तो कोई उत्तराखण्ड सरकार के श्रम विभाग से सीखे। विभाग आम लोगों के कल्याण के नाम पर लुभावनी योजनाएं बना रहा है। गरीब मजदूरों को सुविधा प्रदान करने के लिए करोड़ों खर्च किए जा रहे हैं लेकिन यह सुविधाएं पात्र व्यक्तियों तक नहीं पहुंच पा रही हैं। इसका सटीक उदाहरण है श्रम विभाग की साइकिल सहायता योजनाश्। इस योजना के तहत भवन निर्माण करने वाले श्रमिकों को मुफ्त में वितरित करने के लिए सरकार की ओर से आर्डर की गईं हजारों साइकिलें खुले स्थानों पर रखी गई हैं।
डेढ़ साल पहले लाई गईं इन साइकिलों को जंग लग चुका है और उनमें घास तक जम चुकी हैं। उत्तराखण्ड में श्रम विभाग ने वर्ष 2015 में श्रमिकों के लिए मुफ्त साइकिल योजना शुरू की। योजना के तहत सरकार मकान निर्माण में लगे ऐसे श्रमिकों को फ्री में साइकिल प्रदान करती है जिनका रजिस्ट्रेशन श्भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार बोर्डश् में है। योजना का मकसद है कि निर्माण कार्य में जुटे मजदूर साइकिल पर सवार होकर समय पर कार्य स्थल में पहुंच सकें। लेकिन यह कल्याणकारी योजना धरातल पर कम और सड़कों पर ज्यादा दौड़ रही है। जरूरतमंदों को बांटे जाने के बजाए करोडों के बजट से आर्डर की गईं साइकिलें गोदामों में खुले आसमान के नीचे पड़ी हुई हैं और सड़ने की कगार तक पहुंच गई हैं। ऐसा ही गोदाम विकासनगर तहसील के लक्खनवाला गांव में है। इस गोदाम में डेढ़ साल पहले तकरीबन 5600 साइकिलें रखी गईं। अब तक यह साइिकलें गरीबों को नहीं बांटी गई हैं बल्कि खुले आसमान के नीचे होने की वजह से इनमें से अधिकांश पर जंग लग गई है और उनमें घास तक जमने लगी है। महज 3000 रुपया एक साइकिल की कीमत मानी जाए तो सिर्फ एक गोदाम में ही 1.68 करोड़ का माल खराब हो गया। यदि प्रदेशभर के गोदामों की जांच की जाए तो यह मामला करोड़ों के गड़बड़झाले के रूप में सामने आएगा। ये साइकिलें उस पैसे से खरीदी गईं या खरीदी जानी हैं जो खून-पसीने की कमाई से जनता टैक्स के रूप में सरकार को देती है।