भारत मे हि नही विश्व मे उत्तराखंड देवभूमि के नाम से विख्यात है, देव भूमि मतलब देवताओं का निवास स्थान, कहाँ करते हैं देवता वास जहाँ काम, क्रोध,लोभ, मोह आदि विकार न हो और काम क्रोध आदि विकार बढ़ते कहाँ से है,जब हमारा आहार व्यवहार धुषित होता है,देवभूमि में लोग शान्ति ,आनन्द,और मोक्ष की कामना हेतु आते थे,और इन सद गुणों के स्थान थे हमारे तीर्थ स्थान वैसे तो उत्तराखंड पूरा ही तीर्थ है,पर यहाँ के बद्री,केदार,गंगौत्री, यमनोत्री, हरिद्वार, ऋषिकेश,आदि अनेकों तीर्थ स्थल है,पर आजकल इन तीर्थ स्थलों का स्वरूप बदल गया है,आने वालों की भी मानशिकता भी बदल रही है,आज सरकारों ने तीर्थाटन को पर्यटन का नाम दे दिया है,जिस गंगा में मनुष्यों के तो क्या देवताओं के भी अघ (पापों) का प्रक्षालन होता है,उस गंगा को अब लोग राफ्टिंग के नाम से जान रहे हैं,क्या सरकारों के पास रोजगार का कोई अन्य साधन नही हो सकता,पर मद में चूर सरकारें कहाँ कुछ देवभूमि के शब्द के अर्थ का चिंतन करने में समर्थ है।देव भूमि में हो रही पापों की पराकाष्ठा को त्रिवेंद्र रावत सरकार ने और पंख लगाने का अदम्य साहस वाला काम किया देवप्रयाग में सुरा(शराब) की फैक्ट्री लगाकर लगता है,इनको 2013 याद नही आया हो पर समय पर आएगा,जिस हरिद्वार को विश्व भर में देवालय से बढ़ कर माना जाता है,सुना है वहाँ पशुवधआलय का काम हो रहा है, ये सब सब सुन कर के हृदय काँपता है कि,जिस भूमि में अमृत की बूंदे गिरि हो वहाँ रक्त की बूंदें गिराने का काम किया जा रहा है,याद हो मलेक्षों के आत्यचार से जिस भूमि पर हमारे ऋषि मुनियों ने सनतान के धर्म शास्त्रों की रक्षा करने के लिए शरण ली हो उस भूमि पर पिछली सरकार ने मदरसो को बढ़ाने का कार्य किया है,और संस्कृत विद्यालयों को बंद करने का कार्य निरन्तर आज भी गतिमान है।कब देवभूमि उत्तराखंड के महत्व को हमारी सरकारें समझेंगे, ये चिंतन का विषय है,अगर इसीप्रकार से चलता रहा तो देवभूमि का नाम निर्थक ही समझना,और घोर कलियुग का प्रारंभ यहीं से समझना,जब माँ बेटे को और पिता पुत्री को नही पहचानेंगे।
देवभूमि का बदलता स्वरूप
-आचार्य जयानन्द सेमवाल शास्त्री, मुंबई-