काठमांडू। नेपाल में अपनी अल्पमत सरकार बचाने में जुटे प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को शीर्ष कोर्ट ने बड़ा झटका देते हुए भंग संसद को बहाल कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी को नेपाली कांग्रेस के प्रमुख शेर बहादुर देउबा को मंगलवार तक प्रधानमंत्री नियुक्त करने का निर्देश दिया। पांच महीनों में दूसरी बार भंग प्रतिनिधि सभा (संसद) को बहाल किया गया। कोर्ट ने 23 फरवरी को भी प्रधानमंत्री ओली को झटका देते हुए भंग की गई प्रतिनिधि सभा को बहाल करने के आदेश दिए थे।
सोमवार को चीफ जस्टिस चोलेंद्र शमशेर राणा की अध्यक्षता वाली शीर्ष कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सिफारिश पर राष्ट्रपति भंडारी का निचले सदन को भंग करने का फैसला असंवैधानिक था। पीठ ने मंगलवार तक देउबा को प्रधानमंत्री नियुक्त करने का भी आदेश दिया। 74 वर्षीय देउबा इससे पहले चार बार प्रधानमंत्री रह चुके हैं। कोर्ट ने संसद का नया सत्र 18 जुलाई की शाम पांच बजे बुलाने का भी आदेश दिया। शीर्ष कोर्ट के इस फैसले को ओली के लिए बड़े झटके के तौर पर देखा जा रहा है, जो समय पूर्व चुनावों की तैयारी कर रहे थे।
चीफ जस्टिस राणा ने कहा कि जब सांसद संविधान के अनुच्छेद 76(5) के तहत नए प्रधानमंत्री के निर्वाचन के लिए मतदान में हिस्सा लेते हैं, तब पार्टी व्हिप लागू नहीं होता। पीठ में चार अन्य सीनियर जज- दीपक कुमार करकी, मीरा खडका, ईश्वर प्रसाद खातीवाड़ा और डा. आनंद मोहन भट्टराई भी शामिल थे। पीठ ने पिछले हफ्ते मामले में सुनवाई पूरी की थी।
ष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने प्रधानमंत्री ओली की सिफारिश पर 275 सदस्यीय निचले सदन को 22 मई को पांच महीने में दूसरी बार भंग कर दिया था और 12 तथा 19 नवंबर को मध्यावधि चुनाव की घोषणा की थी। निर्वाचन आयोग ने पिछले हफ्ते मध्यावधि चुनावों के कार्यक्रम की घोषणा भी कर दी थी। उधर राष्ट्रपति द्वारा सदन को भंग किए जाने के खिलाफ नेपाली कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्षी गठबंधन द्वारा दायर याचिका समेत करीब 30 याचिकाएं दायर की गई थीं। विपक्षी दलों के गठबंधन की तरफ से भी याचिका दायर की गई थी। इस पर 146 सांसदों के हस्ताक्षर थे। इसमें निचले सदन को फिर से बहाल करने तथा देउबा को प्रधानमंत्री नियुक्त करने की अपील की गई थी। गौरतलब है कि नेपाल में गत वर्ष 20 दिसंबर को तब राजनीतिक संकट गहरा गया था, जब सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में वर्चस्व को लेकर संघर्ष शुरू हो गया था। प्रधानमंत्री ओली की सिफारिश पर राष्ट्रपति भंडारी ने संसद के निचले सदन को भंग कर दिया और 30 अप्रैल तथा 10 मई को नए चुनाव कराने की घोषणा कर दी थी।