साइबर जालसाजों से कैसे बचें

साइबर धोखाधड़ी से बचाने के तमाम सरकारी सबंध साइबर सेंधमारों के सामने पानी भरते नजर आते हैं। हालत यह है कि सूचना तकनीक के मामूली जानकार ये अपराधी साइबर थानों से लेकर डिजिटल विशेषज्ञों तक को हर मामले में छका रहे हैं। साइबर ठगों के कई गिरोह सव्यि हैं। ओटीपी ल्ॉड, व्ेडिट कार्ड ल्ॉड, ई-कामर्स ल्ॉड, फर्जी पहचान पत्र बनाने, फर्जी मोबाइल नंबर हासिल करने, फर्जी पता तैयार करने, मनी लांडिग और चोरी के सामान की इंटरनेट के जरिये खरीद-बिव्ी आदि से लेकर कोई ऐसा साइबर फर्जीवाड़ा नहीं है, जिस पर साइबर ठग गिरोहों ने हाथ न आजमाया हो। जुलाई 2015 से शुरू हुए डिजिटल इंडिया का मकसद देश के गांव-गांव में ब्राडबैंड पहुंचाना और हर नागरिक को हाई स्पीड इंटरनेट से जोड़ना है। बीते छह वर्षांे में इंटरनेट आधारित कामकाज की यह व्यवस्था हमारे जीवन में काफी गहरे पैठ गई है।
साइबर ठगी के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। ऐसे में अब लोगों को खासतौर पर ठगी से बचने के लिए सावधानियां बरतने की जरूरत है, क्योंकि एक छोटी सी लापरवाही जीवनभर की जमा पूंजी को लूटा सकती है। ठगी के तमाम तरह के मामले सामने आ रहे हैं, जिसमें शातिर ठग लोगों को अपने झांसे में लेकर ठगी को अंजाम दे रहे हैं। कोरोना काल में तो यह महसूस हुआ कि हर काम के वर्चुअल हो जाने के बेशुमार फायदे हैं, लेकिन कई गुना ज्यादा सिरदर्द हैकरों, साइबर फर्जीवाड़े करने वालों की फौज ने पैदा किया है। साइबर अपराधी हर दिन जाल में फंसे शख्स को चूना लगाने की युंियां भिड़ा रहे हैं। डिजिटल सेंधमारी में एक किस्म है फिशिंग की यानी बैंकों के व्ेडिट कार्ड आदि की जानकारी चुराकर रकम उड़ा लेना। दूसरी किस्म है रैंसमवेयर यानी फिरौती की। इसमें लोगों, कंपनियों के कंप्यूटर नेववर्क पर साइबर हमला कर उन्हें अपने कब्जे में ले लिया जाता है और बदले में फिरौती वसूल की जाती है। पिछले साल की तुलना में फिशिंग में 11 फीसदी और रैंसमवेयर में छह फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। साइबर सेंधमारी के जरिये हैकर जमकर चांदी कूट रहे हैं। इनके बाकायदा कई गिरोह भी बन गए हैं। चूंकि इसमें नाममात्र का निवेश है और दूसरे देशों के कानूनी बंधनों में फंसने का कम ही खतरा है, इसलिए साइबर लूटमार बढ़ती ही जा रही है। जब साइबर हमलों से सरकारी तंत्र भी महफूज न रह जाए तो फिर आम जनता के साइबर हितों को सुरक्षित रखने की बात ही क्या की जाए? पिछले डेढ़ साल में आम और खास लोगों के बैंक खातों, निजता यानी पहचान से जुड़े डाटा पर हाथ साफ करने के मामलों में करीब साढ़े छह सौ फीसद का इजाफा हुआ है। सिक्योरिटी फर्म बाराकुडा नेटवर्क के मुताबिक भारत में ऐसी घटनाओं की सालाना संख्या छह-सात लाख तक हो गई है। आधुनिक बैंकिंग के तहत खाता खोलने से लेकर बैंकिंग का सारा कामकाज घर बैठे कराने के लिए बैंकों ने अपने सर्वरों से उपभोंाओं को इंटरनेट के जरिये जोड़ने का जो बयास किया, उसने सुविधा के साथ-साथ कई मुसीबतें भी पैदा कर दी हैं। यह व्यवस्था कई समस्याओं का सबब बन गई है। कभी नेट बैंकिंग के पासवर्ड और एटीएम के पिन चुरा कर ग्राहकों के खातों से पैसा गायब हो जाता है तो कभी एटीएम कार्ड की क्लोनिंग से रकम निकाल ली जाती है। आखिर ऐसी साइबर सेंधमारी से बचा कैसे जाए? कानूनी उपाय इसका एक रास्ता है, लेकिन बात सिर्फ कानून बनाने से नहीं बन रही है। ज्यादा मुश्किल उनके लिए है जिन्हें बैंकिंग, खरीदारी के वर्चुअल विकल्प मजबूरी में अपनाने पड़े हैं और जिन्हें इन साइबर उपायों की समझ और जानकारी नहीं है। जहां बैंकिंग संस्थानों की जिम्मेदारी है कि वे अपने ग्राहकों को साइबर जालसाजों से बचाने के सभी उपायों की जानकारी दें, वहीं सरकार का जिम्मा यह बनता है कि वह कानून बनाने के साथ कड़ी सजाओं के बविधान करें और साइबर थानों में दर्ज हर शिकायत पर कार्रवाई सुनिश्चित करें। अभी तो आलम यह है कि अक्सर पीड़ितों को खुद ही बैंकों के चक्कर लगाकर एटीएम की वीडियो फुटेज आदि हासिल करनी पड़ती है। हमारे देश में खाली बैठे शातिर लोगों की एक बड़ी फौज इधर देश ही क्या, अमेरिका-ब्रिटेन तक के नागरिकों को फर्जी कॉल सेंटर आदि के जरिये लूटने पर आमादा है। ऐसे में यदि साइबर अपराधियों की धरपकड़ कर उन्हें बेहद सख्त सजा देने में तेजी नहीं लाई गई तो यह मर्ज एक लाइलाज महामारी की तरह ही बढ़ता जाएगा। साइबर फर्जीवाड़ों के तार सिर्फ आईटी या इंटरनेट से नहीं जुड़े हैं। अनजान देश की लॉटरी या किसी बर्तन-कपड़े का लालच देकर पुराने मोबाइल फोन की खरीद-फरोख्त, फर्जी तरीके से सिम हासिल करना, फर्जी आधार कार्ड बनवा लेना-यह सब हमारे देश में इतना आम हो गया है।