ऋषिकेश। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि भगवान बुद्ध ने दुनिया को स्थायी शान्ति, संयम और समता का सूत्र देकर जीवन को एक नया अर्थ दिया है। वे करूणा और प्रेम के अथाह सागर थे, आज बुद्ध पूर्णिमा के पावन अवसर पर भगवान बुद्ध को भावभरा प्रणाम। बुद्ध अर्थात जागृत अवस्था! सभी दोषों से मुक्त जीवन। जो मनुष्य अज्ञानता रूपी नींद से जागृत अवस्था को प्राप्त कर लिया हो, वही बुद्ध है। भगवान बुद्ध का ज्ञान अन्तर्मन का हैय अन्तस् को जागृत करने का ज्ञान है। बुद्ध ने लोगों की परिस्थितियों को नहीं बल्कि मनःस्थितियों को बदला।
भगवान बुद्ध ने बिना भेदभाव के पूर्ण निष्पक्षता के साथ सभी को करूणा से गले लगाया और संदेश दिया कि बुद्धम् शरणम् गच्छामि अर्थात बुद्ध की शरण में आइये। न तो अतीत के पूर्वाग्रहों में फंसे रहो और न भविष्य को लेकर चिंतित रहो, बल्कि जो वर्तमान क्षण है जीवन, केवल उस में ही जियो, अतः जागृत होकर केवल वर्तमान में जीना ही जीवन की सार्थकता है। स्वामी ने कहा कि आज इस धरा को बुद्ध की करुणा की नितांत आवश्यकता है। जो इस संसार को कष्टों से मुक्त कर बुद्धत्व के परम आनंद की ओर ले जा सके। भगवान बुद्ध ने अपनी करुणा से दूसरों की सेवा, सहायता और समझ पैदा की।
स्वामी जी ने कहा कि भगवान बुद्ध मानवता को दिशा प्रदान करने वाले एक महान विभूति हुये जिन्होंने अपने जीवन से संदेश दिया और समाज को एक नई राह दिखाई है। ‘आत्म दीपो भवः’ ‘अप्प दीपो भवः’ अर्थात ‘अपने दीपक स्वयं बनो’ का दिव्य सूत्र दिया। भगवान बुद्ध का दर्शन ‘संवेदनशीलता’ पर अत्यंत जोर देता है और आज के इस दौर में भी संवेदनशील व्यक्तित्व चाहिये जो दूसरों के दुखों को अनुभव कर सकेय समझ सके और मदद के लिये हाथ आगे बढ़ा सके क्योंकि सहानुभूति और संवेदनशीलता ही इस धरती पर मानवता को जिंदा रख सकती है। भगवान बुद्ध ने अहंकार से मुक्त जीवन जीने का सूत्र दिया है। ‘मैं’ की भावना से ऊपर उठकर ‘हम’ की भावना जागृत करने का सूत्र दिया।
स्वामी जी ने कहा कि आज दुनिया में जितनी भी समस्यायें हैं उन सब के मूल में कहीं न कही ‘मैं’ और उपभोक्तावादी विचारधारा है। हम दुनिया में यह सांप्रदायिकता, आतंकवाद, नक्सलवाद, नस्लवाद, जातिवाद आदि कई समस्याओं को देख रहें हैं उसके पीछे ‘मैं’ रूपी ‘अहंकार’ ही तो छुपा हुआ है ना अतः हमें मैं से हम की ओर बढ़ना होगा और अहम् से वयम् की ओर बढ़ना होगा। वर्तमान समय की सबसे बड़ी समस्या है प्राकृतिक संसाधनों का दोहन। जितना मिला है, उससे अधिक पाने की इच्छा के कारण प्राकृतिक संसाधन व सामाजिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन किया जा रहा है, जिसके कारण मानवता खतरे में है, अतः अब हमें नैतिकता और सृजनात्मकता के सिद्धान्तों के साथ संतुलित जीवन शैली को अपनाना होगा। भगवान बुद्ध के संदेश हर युग के लिये प्रासंगिक हैं, आईये आज बुद्ध पूर्णिमा के पावन अवसर पर ध्यान करेंय स्वयं से जुड़ें और बुद्धत्व की ओर बढ़ें।