फ़िल्म ने सच कल्पना की थी या झूठ–

अपने कॉलेज में दिनों में हिंदी, इंग्लिश नॉवेल पढ़ने और पिक्चर देखने का बहुत शौक था,हिंदी ही नहीं अंग्रेजी भी। इनके लिए 25 किलोमीटर दूर जाना पड़ता था। आज के कोरोना की भयानकता को देख सहसा सन 1974 में देखी एक पिक्चर आँखों के सामने घूम गयी। कोलंबिया पिक्चर्स की फ़िल्म का नाम था शायद “डाइमेंशन ऐलाई।” जैसा कुछ। एक नया कपल मैरिज के बाद मोटर साईकिल से अपने देश से बाहर दूसरे देश मे चला जाता है। एक महीने बाद लौट कर आता है तो शहर में पसरे सन्नाटे को देख भयभीत हो उठता है जैसे जैसे सड़कों पर आगे बढ़ता है उसे कोई पशु पक्षी मनुष्य पुरुष स्त्री नहीं दिखाई पड़ते। अब कल्पना कीजिये उस भय की विशाल ऊँची ऊँची बिल्डिंगे हैं भवन हैं बाजार हैं पार्क हैं चौड़ी सुंदर सड़कें हैं लेकिन जीवन नाम की कोई चीज नहीं उन्हें दिखाई पड़ती। ऐसे में डरते डरते एक घर मे प्रवेश करते हैं तो उतने बड़े शहर में एक अकेली बुजुर्ग स्त्री को देख,भूत समझते हैं और भयभीत होकर मोटर साईकिल में बैठ भागने लगते हैं। दरसल जब वो कपल अपने देश को छोड़कर दूसरे देश गया था उसके कुछ दिन बाद दूसरे देश ने उस शहर पर रासायनिक अटैक किया था जिसका परिणाम यह था कि सारे जीवित प्राणी मर जाते हैं अर्थात जीवन की समाप्ति हो जाती है,लेकिन धन दौलत अन्य सामग्री सब सुरक्षित रहती है। सिर्फ एक चीज पैदा होती है बहुत बड़ी अरबों की संख्या में वो थी कॉकरोच। कॉकरोच को भी भूख लगती है। वह कपल मोटर साइकिल से दूसरे शहर के लिए भागता है,कॉकरोच उन्हें देखते हैं और देखते देखते करोड़ों कॉकरोच बहुत तेजी से उनके पीछे भागते हैं। फिर वो कॉकरोच लड़की के पैरों से होकर पूरे शरीर पर छा कर उसे खाने लगते हैं लड़का डर कर लड़की को धक्का देकर नीचे गिर देता है यह सोचकर कि कॉकरोच लड़की पर चिपट जाएंगे और वह बच जाएगा लेकिन करोड़ों की संख्या में कॉकरोच उसे भी अपना आहार बना लेते हैं। इस रासायनिक या जैविक वार का ताना बाना शायद दशकों पहले बुन लिया गया था क्योंकि वही आज देखने को मिल रहा है।
सन 1947 में हम स्वतंत्र हुए सन 1949 में चीन में क्रांति सफल हुई। चीन ने कठोर शासन लागू हुआ वहाँ के नेताओं और जनता ने देश को आगे रखा चुपचाप या दंड के भय से अपने स्वार्थ त्यागे, बक बक करने में बजाए सारा ध्यान देश के नव निर्माण में लगाया। हमारे देश मे लोगों ने देश से पहले अपने स्वार्थों को स्थान दिया। हम कुर्सी और सत्ता के लिए, निजी स्वार्थों को पूरा करने,चुनाव लड़,जीत का जश्न मनाने,धरना,प्रदर्शन, हड़ताल,जिंदाबाद,मुर्दाबाद,आग लगाने को,प्रजातंत्र और स्वतंत्रता मानते रहे। देश के लिए,अपने कर्तव्यों के लिए कभी कोई नहीं लड़ा। चीन के दो सबसे बड़े दुश्मन रहे अमेरिका की शक्ति को देख भयभीत रहता था,भारत से हमेशा सीमा विवाद रहा,और मीडिया ने इस दुश्मनी को बुरा बोल बोल कर शिखर पर पहुंचाया। लड़ाई (युद्ध) मे कुछ ही मरते और खुद चीन को भी नुकसान होता, बस यही रास्ता बचा था कोरोना जैविक वायरस का भारत मे प्रवेश करा दे। और उसने बिना गोली चलाए अभी तक ढाई लाख मरवा दिए, इसका दोष भी चीन पर नहीं अपने देशभक्त अपनी ही सरकार पर डाल रहे हैं जबकि सरकार इस मुसीबत से पूरी शक्ति के साथ इतने दुश्मनों से लड़ते हुए लड़ रही है। डेड अरब आबादी और वो भी ऐसी आबादी ऐसी जनता को संभालना उसकी हर इच्छा की पूर्ति कोई आसान काम नहीं। मैंने पहले भी लिखा था मोदी योगी को त्यागपत्र दे देना चाहिए देखते हैं कौन इतना योग्य है जो संभाल सकता है इस देश को इस जनता को उसे आना ही चाहिए।
(छमा याचना सहित,अनपढ़ हूँ बस अपनी भावना व्यक्त कर रहा हूँ देश के प्रति भावुकता में)