5जी/6जी की डेटा प्राइवेसी पर ऑस्ट्रेलियाई एक्सपर्ट्स के साथ रिलायंस जियो बना रहा इंटरनेशनल फ्रेमवर्क

नई दिल्ली, गढ़ संवेदना न्यूज। ऑस्ट्रेलिया और भारत के विशेषज्ञ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई), अगली पीढ़ी की दूरसंचार तकनीकों (5 जी/6 जी), इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी), क्वांटम कंप्यूटिंग, सिंथेटिक बायोलॉजी, ब्लॉकचेन और बिग डेटा जैसी महत्वपूर्ण और उभरती हुई प्रौद्योगिकियों के विकास पर काम कर रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया-भारत साइबर और क्रिटिकल टेक्नोलॉजी पार्टनरशिप के पहले राउंड की सफलता के बाद बुधवार को आस्ट्रेलिया के विदेश मंत्री मारिज पायने ने इसकी घोषणा की।
रिलायंस जियो, आईआईटी मद्रास, सिडनी विश्वविद्यालय और न्यू साउथ वेल्स विश्विद्यालय मिलकर अगली पीढ़ी के दूरसंचार नेटवर्क में प्राइवेसी और सुरक्षा चुनौतियों के समाधान पर काम कर रहे हैं। भविष्य में वायरलेस नेटवर्क के उपयोग और इंटरनेट ऑफ थिंग्स सिस्टम में विस्फोटक तेजी आने की उम्मीद है। ऐसे में 5जी और 6जी नेटवर्कों की क्षमताएं बेतहाशा बढ़ोत्तरी होगी, साथ ही नई पीढ़ी के नेटवर्कों को प्राइवेसी और सुरक्षा चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। अपने सहयोगियों के साथ मिलकर रिलायंस जियो इसी का तोड़ निकालने की कोशिशों में जुटा है। भारत और आस्ट्रेलिया में किए जा रहे एक्सपेरिमेंट्स और रिसर्च का उपयोग ऑस्ट्रेलिया, भारत और विश्व स्तर पर डेटा संरक्षण व्यवस्था को मजबूत करने के लिए किया जाएगा। वायरलेस नेटवर्क की प्राइवेसी और सुरक्षा के खतरों पर एक व्हाइट रिसर्च पेपर जारी किया जाएगा। इसके बाद रेगुलेटर्स और स्टैंडर्ड निकाय के अधिकारियों के साथ बैंगलोर में एक वर्कशॉप होगी। जिसमें उपभोक्ता के डेटा की सुरक्षा के विषय पर चर्चा की जाएगी। इस मुद्दे पर काम करने के लिए प्रो. जोसेफ डेविस के नेतृत्व में एक टीम बनाई गई है जिसमें डॉ दिलीप कृष्णस्वामी-रिलायंस जियो इन्फोकॉम लिमिटेड,प्रो. अल्बर्ट जोमाया-सिडनी विश्वविद्यालय, प्रो. अरुणा सेनेविरत्ने और डॉ। दीपक मिश्रा-न्यू साउथ वेल्स विश्वविद्यालय, जैकब मलाना-ऑर्बिट ऑस्ट्रेलिया, डॉ अयोन चक्रवती-आईआईटी मद्रास और श्रीगणेश राव-कॉलिगो टेक्नोलॉजीज शामिल हैं। ऑस्ट्रेलिया-भारत साइबर और क्रिटिकल टेक्नोलॉजी पार्टनरशिप के तहत दो और रिसर्च प्रोग्रामों को भी अनुदान दिया गया है। क्वांटम टेक्नोलॉजी के लिए फ्रेमवर्क तैयार करने का काम सिडनी विश्वविद्यालय और भारत के ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन को सौंपा गया है। साथ ही वैश्विक कंपनियों के लिए क्रिटिकल टेक्नोलॉजी सप्लाई चेन के लिए फ्रेमवर्क तैयार करने का काम ला-ट्रोब विश्वविद्यालय और आईआईटी कानपुर के हवाले है।