परमार्थ निकेतन में ढोल-नगाड़े और वेद मंत्रों के साथ किया गया महाकुम्भ बैसाखी सात्विक स्नान

-बैसाखी पर्व भारत की समृद्धि का प्रतीकः स्वामी चिदानन्द सरस्वती

ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती, परमार्थ गुरूकुल के ऋषिकुमारों और अन्य सभी ने ढोल-नगाड़े और वेद मंत्रों के साथ बैसाखी सात्विक स्नान किया। सर्दियों की फसल काट लेने के बाद भारत के पश्चिमोत्तर हिस्से में बड़े ही धूमधाम से बैसाखी का त्यौहार मनाया जाता है। स्वामी जी ने कहा कि बैसाखी पर्व भारत की समृद्धि का प्रतीक है।
परमार्थ निकेतन, आभा बागडोदिया चेरिटेबल ट्रस्ट, महावीर सेवा मिशन, कोलकता, ग्लोबल इंटरफेथ वाश एलायंस और डिवाइन शक्ति फाउंडेशन के सयुंक्त तत्वाधान में आयोजित निःशुल्क नेत्र चिकित्सा शिविर में परमार्थ निकेतन में 300 से अधिक रोगियों को जांच के पश्चात चश्मे और दवाईयाँ वितरित की गयी तथा प्रकाश भारती में आज चंद्रेश्वर नगर, शीशम झाड़ी, मायाकुंड, 14 बीघा एवं अन्य आस-पास के क्षेत्रोें से लगभग 600 लोगों ने अपना रजिस्ट्रेशन करवाया, जिन्हें नेत्र विशेषज्ञों द्वारा दवाईयाँ और नम्बर वाले चश्मे दिये जा रहे हैं।
आज का दिन कई मायनों में विशेष है, आज स्वतंत्र भारत के पहले कानून एवं न्याय मंत्री तथा भारतीय संविधान के प्रमुख वास्तुकार, मरणोपरांत भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित बी. आर. अम्बेडकर जी की जयंती है, इस अवसर पर स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुये कहा कि बाबा साहेब ने अस्पृश्यता को दूर करने के लिये जीवन पर्यंत अथक प्रयत्न किये। उन्होंने ‘ज्ञान ही मुक्ति का मार्ग है’ इस सूत्र पर अत्यधिक जोर दिया तथा स्वतंत्रता और समानता के मूल्यों को स्थापित करने के लिये धर्मनिरपेक्ष शिक्षा का समर्थन किया। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि सेवा, समर्पण, त्याग और करूणा की भावना ही पीड़ितों को कष्ट मुक्त कराने के लिये प्रेरित करती है। अगर हमारे भीतर करूणा और परोपकार की भावना हो तभी समाज के अंतिम व्यक्ति की मौलिक जरूरतें पूरी की जा सकती हैं तथा सभी को लाभ पहुँचाया जा सकता है।

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