संस्कृतियों का संरक्षण ही समृद्ध मानवीय सभ्यता का प्रमुख अंगः स्वामी चिदानन्द सरस्वती

ऋषिकेश। भारत के महान संत, विचारक और आध्यात्मिक गुरू रामकृष्ण परमहंस जी की जयंती के पावन अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने उन्हें भावाजंलि अर्पित करते हुये कहा कि रामकृष्ण परमहंस जी की कृपा दृष्टि से ही पूरे विश्व को स्वामी विवेकानन्द जी के रूप में एक महान विचारक मिले जिन्होंने भारतीय संस्कृति, अध्यात्म, वेदांत और योग रूपी भारतीय दर्शन का परिचय पश्चिमी दुनिया को कराया, ऐसे महान गुरू को शत-शत नमन।
ज्ञात हो कि श्री रामकृष्ण परमहंस ही का जन्म 18 फरवरी 1836 को हुआ था। रामकृष्ण परमहंस जी माँ काली के परम भक्त थे। उन्होंने अपने जीवनकाल में वेदांत,  उपनिषद् और अन्य कई धर्मग्रंथों का अध्ययन कर अपने जीवन में अनेक आध्यात्मिक प्रयोग किये। उनका मानना था कि वेद ही ज्ञान का परम स्रोत है और ज्ञान से तात्पर्य संसार से मुक्ति के माध्यम से मोक्ष की प्राप्ति है। परमहंस जी ने कहा कि आंतरिक शुद्धता एवं आत्मा की एकता ही जीवन का मूल सिद्धांत है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि श्री रामकृष्ण परमहंस जी ने सभी धर्मों की एकता और सभी के साथ मानवतापूर्ण व्यवहार का संदेश दिया। वर्तमान समय में विश्व में विभिन्न स्थानों पर बहु संस्कृतियों के कारण आपसी वैमनस्यता बढ़ रही हैं ऐसे में रामकृष्ण परमहंस की शिक्षायें और संदेेशों को अमल में लाना जरूरी है क्योंकि वैश्विक स्तर पर बढ़ती वैमनस्यता, मानवता के लिए भी घातक है।
स्वामी जी ने कहा कि भारत का सिद्धांत विविधता में एकता है और इसी सिद्धान्त के आधार पर हमारे ऋषियों ने राष्ट्र का निर्माण किया है तथा यही भारतीय संस्कृति का मूल भी है। हमारे पूर्वजों ने सांस्कृतिक एकीकरण के स्थान पर विविधता में एकता के सिद्धांत को स्वीकार किया है जिसमें सभी को हित समाहित है। हमारे ऋषियों ने सभी सांस्कृतियों को सुरक्षित रखा तथा सांस्कृतिक विविधता को संरक्षण दिया। स्वामी जी ने कहा कि भारत की संस्कृति अपने आप में अतुलनीय है। अतः सभी को विशेष कर हमारे युवाओं को अपनी संस्कृति के साथ दूसरे की संस्कृति के मूल्यों को भी समझा होगा और आदर देना होगा तभी समाज में एकता और मानवता का संचार हो सकता है। भारतीय संस्कृति हमें सर्वधर्म सद्भाव, विविधता में एकता और वसुधैव कुटुंबकम जैसे मूल सिद्धांतों के साथ जीवन जीने का संदेश देती है। स्वामी जी ने कहा कि विभिन्न संस्कृतियों का संरक्षण ही समृद्ध मानवीय सभ्यता का प्रमुख अंग है। मानवता और मानवीय सभ्यता के लिए जरूरी है कि है कि सभी संस्कृतियों का आदर और सम्मान किया जाए। आईये इस सिद्धान्तों को जीवन में स्थान देते हुये महान विचारक और संत श्री रामकृष्ण परमहंस जी की जयंती पर उन्हें अपनी श्रद्धाजंलि अर्पित करें।