नशे में डूबती उत्तराखण्ड की युवा ऊर्जा

देव कृष्ण थपलियाल
देहरादून। पहाड में प्रचलित ’सूर्यास्त पहाड मस्त’ की कहावत भले पूरानीं हो, परन्तु इसे हमनें केवल मनोविनोद के रूप में ही जाना-पहचाना है । अक्सर लोग इस कहावत को हास्य-व्यंग या हंॅसी-ठहाके के लिए ही कहते रहें हैं, ? भले इस कहावत का बडा प्रतिशत पहाड पर चरितार्थ होता भी रहा हो ! परन्तु इस पियक्कडी से बहुतों का अहित भी नही किया ? यहाॅ मेरी मंशा शराब/नशा को प्रोत्साहित करना कतई नहीं है ?। पहली बात ये कि पहाड के हर दूसरे घर में ’फौजी भैजी’ है, जिसके इंतजाम में कोई दिक्कत नहीं आती है, दूसरा साल भर मौंसम का मिजाज अक्सर ठंडा रहता है तो ऊपर से सरकार की मेहरबानियाॅ ही ऐसी की हर गली-चैराहे पर सुलभता से दुकानें उपलब्ध है, के चलते अनचाहे शराब नें यहाॅ पाॅव जमाये हैं ? जिसका निःसन्देह विरोध होंना चाहिए और समय-समय पर शराब विरोधी आॅदोलनों के जरिये भी लोंगों नें नशा खोरी का जमकर विरोध किया ! खासकर महिलाओं और युवाओं नें शराब के खिलाफ बडी जंग लडी और अभी भी लगातार इस मुहिम को गति दे रहीं हैं ? उत्तराखण्ड की लम्बी लडाई जीतनें के बाद उम्मीद थीं कि सरकार शराब उन्मुलन की दिशा में आगे बढेगी ? परन्तु हुआ, ठीक इसके उलट ? सरकारी नीति शराब को आगे बढानें में लगी है, लाख विरोध के बाद भी सरकार हर साल शराब के टेंडर आमंत्रित कर देती है ? और लोग शराब नीति के खिलाफ सडकों पर आॅदोंलित होंनें को मजबूर हो जाते हैं।
लेकिन नशे के नाम पर दिनों-दिन जिन नशीले पदार्थों का सेवन उत्तराखण्ड के लोंगों खासकर युवाओं किया जा रहा है, वह बेहद चिंतनीय है, ? यह प्रवृत्ति इतनें खतरनाक ढंग से आगे बढ रही है, कि अगर समय रहते इसे काबू नहीं पाया गया, तो आनें वालीं पीढियों के लिए यह बडे संकट का सबब बन सकता है ? राज्य के युवाओं को किसी भी अनहोंनीं की तरफ धकेल सकता है, ? सुदूर पहाड के शान्तिवादियों में भी जहाॅ लोग इन नशीले पदार्थों का नाम भी नहीं जानते वहाॅ तस्कर स्मैक, चरस, डोडा, जैसे इंजेक्शन और कैप्सूल बेचकर युवाओं को नशेडी बनाया जा रहा है। ड्रग्स तस्करों का जाल पहाड के गाॅव-गाॅव तक फैंलनें की खबरें निरंतर प्राप्त हो रहीं हैं । अभी हाल में ही उत्तरकाशी जिले की पुलिस नें सीमान्त क्षेत्र मोरी में हिमाचल के दो लोगों को स्मैक के साथ गिरफ्तार किया है, पुरोला पुलिस नें 7 ग्राम स्मैक के साथ एक अन्य व्यक्ति को पकडा, पूछताछ के दौरान उसनें बताया की वह इसे देहरादून से लेकर आया है, और स्थानीय लोंगों को बेचेगा ? इससे जाहिर होता है, कि स्थानीय लोग भी इन नशीले पदार्थों के आदि हो चुके हैं ? यह इस जिले की एक सप्ताह में तीसरी घटना है। गोपेश्वर जनपद चमोली में देहरादून निवासी एक व्यक्ति को तीन लाख रूपये की तस्करी में पाॅच लोंगों पर अलग-अलग पाॅच मुकदमें दर्ज हैं। इन लोंगों से 6200 कैप्सूल बरामद हुऐ, जबकि एक अन्य मामलें में 980 टैबलेट बरामद किए गये । जनपद टिहरी पुलिस नें इस महिनें की 31 तारीख तक नशा-तस्करी के 16 मुकदमें दर्ज कियें हैं। एनडीपीएस के मामलों में पौंनें दो किलो चरस और 11 ग्राम स्मैक पकडा गया। राज्य की रूडकी पुलिस नें विगत साल 730 नशीली गोलियाॅ और एक हजार इंजक्शन बरामद किऐ। जबकि आबकारी अधिनियम के तहत कच्ची और अवैध शराब के पकडे जानें की घटना तो राज्य में आम हैं।
विगत साल लाॅकडाउन के कारण सभी गतिविधियाॅ लगभग ठप रहीं तब भी आश्चर्यजनक रूप से राज्य पुलिस द्वारा 13 करोड की ड्रग्स बरामद की ? पुलिस मुख्यालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार 2020 में राज्य में ड्रग्स तस्करी के 1262 मुकदमें दर्ज हुऐ तथा 1490 अभियुक्तों को गिरफ्तार किया गया था। यही नहीं चरस, अफीम, स्मैक, डोडा, गाॅजे के मुकाबले तस्कर अब नशीले इंजक्शन का ज्यादा करोबार भी बढा रहे हैं, बल्कि गुप्त रूप से भी नैटवर्क फैलाकर इस धंधें को फैलानें का काम किया जा रहा है । पिछले साल के आॅकडों के अनुसार राज्य में 8408 नशीलें इंजक्शन पकडे गये, साथ करीब 5 लाख नशीली गोलियाॅ भी प्राप्त हुईं हैं। राज्य में इस तरह के नशीले मादक पदार्थों के प्रचलन के रोकथाम के लिए सरकार और पुलिस अपना-अपना काम कर रही है। कई मोर्चों पर उसे सफलता भी मिली है, चमोली जिला पुलिस कप्तान नें अपनें जिले में अवैध शराब, चरस, स्मैक सहित नशे के पदार्थों की तस्करी के खिलाफ बडा अभियान छेडा है । राज्य एसटीएफ के अधीन ’एंटी ड्रग्स सेल’ का गठन हुआ है, आईपीएस अधिकारी अजय सिंह इसके नोडल अधिकारी हैं। देहरादून पुलिस नशा तस्करी के खिलाफ ’’आपरेशन सत्य’’ चला रही है। लेकिन अहम सवाल ये है, उन कारणों पडताल होंनीं चाहिए जिन कारणों नें राज्य को इस तरह के नशे में डूबोनें को आमादा किया है ? नशीले पदार्थों की तस्करी और सेवन में महिलाऐं भी आगे आ रहीं हैं, एक मनोचिकित्सक की मानें तो नशा करनें वाले कुल लोंगों में महिलाऐं और युवतियों की संख्या 30 से 40 फीसदी है ? इनमें वे महिलाऐं और युवतियाॅ शामिल हैं, जो घरेलू हिंसा अथवा अन्य किन्हीं कारणों से दबाव में हैं, कुछ महिलाओं को उनके पति के दबाव में इस कारोबार को अपनाना पडा, कुछ को मोटी कमाई के आकर्षण नें इस लत का शिकार बना दिया है। कई समाजशास्त्री इसे पुरूष वर्चस्व के खिलाफ महिलाओं का आक्रोश भी कह रहे हैं । जो क्षेत्र पुरूषों के लिए थे, बदलतें समय में महिलाओं नें भी वहाॅ सेंधमारी करनी शुरू कर दी है, पुरूषों से बराबरी करनीं शुरू कर दी है ? स्कूली-कालेजों में पढाई करनें वाले कम उम्र के छात्र पहले शौक और बाद में इसके लत के शिकार हो रहे हैं, एक पुलिस अधिकारी की मानें तो पुलिस भी कभी-कभार ऐसे बच्चों पर ’एक्शन’ करनें से बचती है, ताकि उनका आगे उनका जीवन खराब न हो जाय, ? लेकिन कोई ’कार्यवाही’ न होंनें की ’छूट’ उन्हे नशे के दल-दल में घूसनें के लिए ’प्रोत्साहित’ करती है। पहाड के लोंगों को जिस प्रतिष्ठा से जाना जाता रहा है, उस छवि का तो सत्यानाश तो होगा ही होगा, साथ ही प्रदेश जिसे देवभूमि के नाम से जाना जाता है, रूग्ण और अस्वस्थ मानसिकता के लोंगों का प्रदेश कहलायेगा ? इससे पहले की ’प्रदेश नशेडियों का अड्डा बनें ! सरकार को सक्रिय पहल करनीं चाहिए, पुलिस जाॅच में उन स्थानों और लोंगों की भी पहिचान सामनें आईं हैं, जो नशे की सप्लाई में लिप्त हैं, पुलिस के अनुसार सहारनपुर-बरेली के संगठित अपराधी हैं, जो अक्सर युवाओं को निशाना बना रहे हैं, हाॅस्टलों में भी इनकी घूसपेट हैं। इन चिन्हित स्थानों को लेकर सरकार जागरूक रहे, तथा नशेडी हो चुके लोंगों सुधारगृह का निर्माण कराये । स्कूल-कालेजों में ऐसे पाठ्यक्रम तथा विशेष जागरूकता कार्यक्रम को संचालित करे ताकि युवा नशे से बचे रहें।