—हेमचंद्र सकलानी–
देहरादून। जिनके तन-मन में, रग-रग में, साँस-साँस में भारतीयता का, राष्ट्रीयता का समावेश था ऐसे भारतीय राष्ट्रीयता के अटल स्तंभ अटल बिहारी बाजपेयी जी की आज हम सब जयंती मना रहे हैं । वे हमारे बीच एक ऐसा अभाव, एक ऐसा शून्य छोड़ गए हैं जिसकी पूर्ति शायद कभी संभव न हो पाए। जब तक जीवित रहे उनका 94 वर्ष का जीवन स्पष्ट उदाहरण है नई पीढ़ी के लिए की बिना संकट संघर्ष अभावों से जूझे महान जीवन नही पनपता। करोड़ों लोगों के दिलों में बसने वाले नक्षत्र पुरुष हज़ारों वर्षों में जन्म लेता है अर्थात ऐसे महान पुरुष को जन्म देने के लिए समय को भी वर्षों प्रतीक्षा करनी पड़ती है। शायद ऐसे पुरुषों के लिए ही शायर अल्लमा इकबाल को शेर लिखना पड़ा -” हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है,
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा।”
वर्षों पहले रात 11 बजे के करीब देहरादून के कौलागढ़ में उनसे मिलने का अवसर मिला, संसद में गरजने वाले बाजपेई जी को इतना शांत चित्त पाया और देर रात की वजह से कुछ बोल भी नही पाए थे। लेकिन जब भी संसद में जोरदार तरीके से उन्होंने अपनी राष्ट्रप्रियता को व्यक्त किया था तब सारी संसद भी मौन हो उन्हें सुनती रहती थी – उनकी संसद में जोरदार ओजस्वी वाणी में कही पंक्ति ” मातृ भूमि से बढ़कर कोई चंदन नही होता, वन्दे से मातरम बढ़कर कोई वंदन नही होता।” जिसने भी सुनी होगी कभी भूल नहीं सकता। नि:सन्देह जिस भूमि पर हम जन्म लेते हैं जो हमे पालती पोस्ती बड़ा करती है जीवन की सुविधाएं देती है क्या उसकी वंदना न करना पवित्रता हो सकती है। उन्होंने ही संसद में कहा था- “भारत कोई जमीन का टुकड़ा नही … जीता जागता राष्ट्र पुरुष है।” क्या किसी ने ऐसा कहने की हिम्मत जुटाई, इस तरह अपने राष्ट्रप्रेम की भावनाएं प्रकट की थीं। ऐसा तभी कहा जा सकता है जब अंदर देश के प्रति कुछ हो। उनके संसद में कहे शब्द जैसे दिल मे टँकित हो गए थे
“- यह चंदन की भूमि है यह अभिनन्दन की भूमि है, यह तर्पण की भूमि है यह अर्पण की भूमि है। इसका कंकर कंकर शंकर है इसका बिंदु बिंदु गंगा जल है, हम जिएंगे तो इसके लिए हम मरेंगे तो इसके लिये।”
इन्हीं शब्दों को जोरदार तरीके से संसद में बोलकर स्मृति ईरानी ने विपक्षियों को संसद से उठकर जाने को विवश कर दिया था। आज उनके जन्म दिवस पर अपनी श्रद्धांजलि इन्हीं शब्दों में व्यक्त कर सकता हूँ, अर्पित कर सकता हूँ –
रहे अटल अविजयी
भले ही,
पर तुम बताओ
समय से कौन जीत पाया,
जीता वही,
जो देश और
जनहित के लिए जिया
और उसका
प्यार जी पाया।
आए होंगे धरा पर यूँ तो
लोग करोड़ों लेकिन
तुम सा जीवन भला
कौन जी पाया।
जो समय ले गया
छीनकर तुम्हें,
यकीनन
बहुत पछतायेगा।
आने वाली सदियाँ फिर
तकेंगी राह तुम्हारी
भले ही
जाकर कोई फिर
लौट नही पाया।
रत्न थे तुम अनमोल
जिसका था नही
मोल कोई,
वर्षों तक जिससे
मौत भी थी हारी
ऐसे थे हमारे
अटल बिहारी।
शांत, सहज, सरल
सौम्यता, साहित्य,
कविता की
प्रति मूर्ति तुम
आज खामोश हो
मगर जिंदा रहेंगे
धरा पर
तुम्हारे बोल।
हर आँख आज नम हो
कह रही तुम्हें
नमन है तुम्हें
शत शत नमन है।