ह्यूनसांग के देश का अन्तरंग…

यतीन्द्र मिश्र

कोविड-19 जैसी वैश्विक महामारी के चलते हाल के दिनों में पूरी दुनिया के लिए खलनायक बन चुके देश चीन की एक पहचान कभी यह रही थी कि वह महान दार्शनिक कवियों तू-फू और ली-पाई की धरती भी है। पिछली शताब्दी में चीन का एक बड़ा रुतबा बड़े साम्यवादी देश के रूप में रहा है, जिसमें पिछले दशकों में उसका पूँजीवाद की ओर लौटना, नये दौर में सामाजिक-राजनीतिक बदलावों का संकेत भी है, जिसका विश्व राजनीति के मानचित्र पर मूल्यांकन होना बाकी है। यात्रा लेखक और हिन्दी साहित्य के अभियानों में सक्रिय संदीप भूतोरिया की ‘चाईना डायरी’ इस मामले में विश्व सांस्कृति के लिहाज से चीन पर ऐसी समकालीन पाठ्य-वैचारिकी है, जिसके हवाले से इस देश के बदलते हुए अन्तर्मन को पढ़ा जा सकता है। भूतोरिया अपनी यात्रा को एक ऐसी सहज यायावरी का किस्सा बनाते हैं, जिससे होकर गुजरना चीन को नजदीक से समझने जैसा है।

एक सतर्क अन्वेषी के भेष में लेखक अपनी पाँच दिनों की इस यात्रा-डायरी को एक बड़े फलक वाली संस्कृति-परिक्रमा का कलेवर देता है। विश्वास ही नहीं होता कि चन्द दिनों का यह प्रवास इतना सघन और भरे-पूरे विवरण वाले दस्तावेज में कितनी सार्थकता से रूपान्तरित हो जाता है। वह भी एक ऐसे देश का वृत्तान्त, जिसकी परम्परा में ह्यूनसांग और फाहियान जैसे इतिहासकार यात्रिक हुए, जो हर्षवर्धन और चन्द्रगुप्त के काल में भारत आकर हमारे सांस्कृतिक-सामाजिक बदलावों का लेखा-जोखा वृहद स्तर पर लिपिबद्ध करते हैं।

बिना कोई फैसला सुनाए लेखक एक ऐसी सजग दृष्टि से चीन के अन्तरंग का शजरा लिखता है, मानो वह कई वर्षों से इस धरती के विभिन्न प्रान्तों में जाकर सूचनाएँ, किस्से और इतिहास इकट्ठा करता रहा हो। यह वृत्तान्त कई चैकाने वाले तथ्यों को रेखांकित करने वाला ऐसा रजिस्टर भी है, जो ब्रिटिश काल के अंग्रेजी दस्तावेजों की याद दिलाता है। वे सूचनाएँ, जो प्रमाणिकता के साथ लिखी जाकर किसी समाज का पूरा सच उजागर कर देती थीं। मसलन, भूतोरिया ऐसी कई चीजों से आपका ज्ञानवर्द्धन कराते हैं, जो चीन को समझने में जरुरी औजार बन सकते हैं। वे संदेवनशीलता से चीन की महान दीवारके बनने के इतिहास के पीछे जाते हैं कि यह इमारत दुनिया का ऐसा विशालतम स्थापत्य रहाहै, जिसे इंसानों के खून पसीने और जीवन के मूल्य पर रचा गया। इसके निर्माण के दौरान ढेरों कारीगरों, मजदूरों के मर-खप जाने के बाद उनको उसी दीवार के ईंट-गारे में शामिल कर लिया गया, जिसे देखने सैलानी अहोभाव से चीन की यात्राएँ करते रहे हैं। इसी तरह,यह देश मुसलमानों के साथ मानवीय व्यवहार बरतने में कोताही करता रहा है। लेखक महसूस करता है कि वहाँ शिया समाज को छोड़कर सुन्नी सम्प्रदाय के साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता है। उन्हें जबरन इस्लाम धर्म को छोड़ने के लिए बाध्य करने से लेकर चीन की धार्मिक मान्यताएँ स्वीकारने के लिए प्रताड़ित करने का अभियान, माओ के इस देश की अत्यंत निर्मम छवि से साक्षात्कार कराता है।

चीन ऐसा ही है- असहिष्णु और अनुदार। संदीप भूतोरिया की खोजी पत्रकार वाली निगाह से छोटी से छोटी बात भी छुपती नहीं, बल्कि अपने नंगे सच के साथ सामने आकर खड़ी हो जाती है। ऐसे में यह यात्रा कौतुहल जगाने वाली और वैचारिक संवाद का माध्यम बन जाती है, जिसे उनके दो भारतीय प्रवासी मित्र गीता और भरत लेखक के साथ मिलकर पूरा करते हैं।  

पाँचों दिन की दैनन्दिनी कुछ ऐसी टीपें भी दर्ज करती है, जिसे पढ़ना आनन्द देता है, क्योंकि इतनी सूक्ष्मता से चीन की पसन्द-नापसन्द को कम ही लिखा गया है। जैसे, वहाँ हिन्दी फिल्मों के मशहूर अभिनेता जितेन्द्र सर्वाधिक लोकप्रिय रहे हैं।…और उनसे पहले, जब सोवियत भूमि पर भारतीय फिल्मों ‘आवारा’ और ‘श्री 420’ का बोलबाला रहा, तब से चीन भी राजकपूर को पसन्द करने लगा था। यह भी कि शाकाहार के नाम पर मुश्किल में पड़ने वालों के लिए राहत भरी एक बात कि वहाँ ‘गांग-डे-लिन’ नाम का एक वेजेटेरियन रेस्त्रां भी मौजूद है।

किताब लक्ष्य करती है कि वहाँ लोक कलाकारों का बहुत सम्मान होता है। वे एक कलाकार के घर चाय पीने का एक पॉट पसन्द करते हैं औरउसे खरीदने के लिए जब दाम पूछते हैं, तो बताया जाता है कि यह मिट्टी का बर्तन भारतीय मूल्यों में दस लाख रुपये का है। हैरत से भरा हुआ उन्हें जवाब मिलता है- ‘इसे हमारे कारीगर डू जियानगुआ ने बनाया है, जो हमारे देश के सम्मानित पॉटर हैं। किताब में हांगकांग के इतिहास की सरस चर्चा की गयी है, जो हमें आधुनिक ढंग से इन देशों के बारे में जानकार बनाती है। चीनवासी भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विदेश कूटनीति के समर्थक रहे हैं और उनके प्रति सम्मान से भरकर इसे ‘मोदी डॉक्ट्रिन’ की संज्ञा से नवाजते हैं, मगर आजकल के बदले परिदृश्य में चीन के भारत की सीमा में अनधिकृत प्रवेश की षडयन्त्र नीति आपत्तिजनक, भर्त्सना के योग्य है, जिसका सैन्य अभियान के स्तर पर मुंहतोड़ जवाब दिया जा रहा है चीन के विरोधाभासों को सूक्ष्मता से पकड़ने वाली एक जरुरी किताब।