महासू मंदिर परिसर में सीसे के इन छोटे-छोटे गोलों को उठाने में छूट जाते हैं बलशालियों के पसीने

देहरादून. गढ़ संवेदना। महासू मंदिर परिसर में सीसे के दो गोले मौजूद हैं, जो पांडु पुत्र भीम की ताकत का अहसास कराते हैं।  गोलों को देखकर कोई भी कह देगा कि इन्हें आसानी से उठाया जा सकता है, पर उठाने में अच्छे से अच्छे बलशालियों के पसीने छूट जाते हैं। मान्यता है कि भीम इन गोलों को कंचे (गिटिया) के रूप में इस्तेमाल किया करते थे। आकार में छोटे होने के बावजूद इन्हें उठाने में बड़े से बड़े बलशालियों के भी पसीने छूट जाते हैं। इन गोलों में एक का वजन छह मण (240 किलो) और दूसरे का नौ मण (360 किलो) है।  इन गोलों लोक मान्यता है कि ताकत का घमंड दिखाने पर नहीं उठाए जाते स्थानीय मेलों के दौरान क्षेत्र के लोग गोलों पर ताकत आजमाते हैं ।

देहरादून जनपद के जौनसार-बावर क्षेत्र में स्थित प्रसिद्ध धार्मिक स्थल महासू मंदिर हनोल के प्रांगण में रखे सीसे के दोनों गोलों का धार्मिक व ऐतिहासिक महत्व है। किवंदति है कि द्वापर युग में अज्ञातवास के दौरान पांडव हनोल, चकराता व लाखामंडल आदि स्थलों पर ठहरे। लोक मान्यता है कि हनोल स्थित महासू मंदिर परिसर में रखे सीसे के दोनों गोलों से बचपन में पाण्डु पुत्र भीम खेला करते थे। आकृति में छोटे दिखने वाले इन गोलों का वजन छह और नौ मण है यानि ढाई से साढ़े तीन कुंतल। देखकर ऐसा ही लगता है मानों हर कोई इन्हें आसानी से उठा लेगा, लेकिन इन्हें उठाने में अच्छे-अच्छों के पसीने छूट जाते हैं। सैलानियों के आकर्षण का केंद्र इन गोलों पर क्षेत्र के लोग स्थानीय मेलों के दौरान ताकत आजमाते हैं। सैलानी क्या, श्रद्धालु क्या, मंदिर में आने वाला हर शख्स इन गोलों को कंधों पर उठाने का भरसक प्रयास करता है। कुछ कामयाब होते हैं तो कुछ निराश। गोलों के वजन का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कंधें पर उठाने के बाद फेंकने पर जमीन में चार से पांच इंच तक गहरा गड्ढा हो जाता है। लोक मान्यता है कि यदि कोई व्यक्ति ताकत के घमंड में गोलों को कंधों पर उठाने का दावा करता है तो उसकी ताकत गोलों को छूते ही काफूर हो जाती है, पर श्रद्धापूर्वक उठाने पर गोलों को आसानी से उठाया जा सकता है। मंदिर में बिस्सू व जागड़ा पर्व के दौरान सैकड़ों लोग गोलों को कंधे पर उठाने का प्रयास करते हैं। 

हनोल स्थित महासू मंदिर चारों महासू भाइयों का मुख्य मंदिर है। इस मंदिर में मुख्य रूप से बूठिया महासू (बौठा महासू) की पूजा होती है। मैंद्रथ नामक स्थान पर बासिक महासू और की पूजा होती है। टोंस नदी के दायें तट पर बंगाण क्षेत्र में स्थित ठडियार (उत्तरकाशी) गांव में पबासिक महासू पूजे जाते हैं। ठडियार हनोल से करीब तीन किमी दूर है। सबसे छोटे भाई चालदा महासू भ्रमणप्रिय देवता हैं, जो कि 12 वर्ष तक उत्तरकाशी और 12 वर्ष तक देहरादून जिले में भ्रमण करते हैं। इनकी एक-एक वर्ष तक अलग-अलग स्थानों पर पूजा होती है, जिनमें हाजा, बिशोई, कोटी कनासर, मशक, उदपाल्टा, मौना आदि पूजा स्थल प्रमुख हैं। महासू के मुख्य धाम हनोल मंदिर में सुबह-शाम नौबत बजती है और दीया-बत्ती की जाती है। 

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